बाल-मंदिर परिवार

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गुरुवार, 30 दिसंबर 2010

नटखट बंदर


शिशु गीत :डा. राजीव पांडेय



नटखट बंदर
है अलबेला ,
छीन झपट कर
खाए केला .
जब भर जाता
पूरा पेट ,
तब जाता वह
उल्टा लेट
***
व्यवसाय से चिकित्सक
डा. राजीव पांडेय जी की
बच्चों के लिए दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं .
संपर्क : डाकघर के सामने , पुवायां , शाहजहांपुर (उ. प्र.)

रविवार, 26 दिसंबर 2010

जाड़ा आया

बाल रचना  
सृष्टि पांडेय
जाड़ा आया , जाड़ा आया  
जाड़े में निकली रजाई 
ओढ़े बैठे चीकू भाई 
जब भी पापा छेना लाते
जल्दी से जुट जाते हो 
छेना ख़त्म हुआ नहीं की 
रजाई में घुस जाते हो 
टीचर जब चिल्लाती हैं 
भाग निकलते हो शु शु , 
टीचर ने जब थप्पड़ मारा 
करने लगते हो ऊँ ऊँ . 

गोरखधंधा-सुधीर पांडेय

बाल कविता 
डा. सुधीर पांडेय 
कितने तारे आसमान में , 
एक अकेला  चंदा . 
मुन्ना बैठा सोच रहा ये 
कैसा गोरखधंधा ? 
एक चाँद से हो जाती है 
सारी रात उजाली . 
सब तारे मिल भगा न पाते 
रात अमावस काली . 
सूरज दादा दिन भर तपते 
शाम कहाँ को जाते ?
काले - भूरे बादल उड़-उड़ 
जाने कहाँ से आते .
बिजली क्यूँ चमका करती है , 
बादल क्यूँ गुर्राते . 
जब भी बादल बरसा करते 
मेढक क्यूँ टर्राते ? 
पानी धरती को छूते ही 
हो जाता क्यूँ गंदा . 
मुन्ना बैठा सोच रहा ये 
कैसा गोरखधंधा ? 
सुधीर पांडेय 
अध्यक्ष ,अभिज्ञान साहित्यिक संस्था  . 
बड़ा गांव, शाहजहांपुर ( उ. प्र. )

शेर की मौसी

बाल रचना 

 सृजन पांडेय 

बिल्ली मौसी  बिल्ली मौसी ,   
हर दिन तुम आ जाती हो ,
दूध अगर मिल जाता तुमको 
उसको तुम पी जाती हो 
मिल जाता है चूहा तुमको ,
उसको चट कर जाती हो .  
शेर की मौसी  हो तुम 
इसलिए गुर्राती हो 
बिल्ली मौसी , बिल्ली मौसी ,   
हर दिन तुम आ जाती हो

परी दीदी आओ

बाल रचना
सृजन पांडेय 

परी दीदी आओ न 
जल्दी हमें सुलाओ न .
निदिया में हमको तुम 
अच्छे सपने दिखाओ न 
चाकलेट के पहाड़ , लड्डू के पेड़ ,
दूध के झरने दिखाओ न 
परी दीदी आओ न .
जल्दी हमें सुलाओ न .

बंदर जी का सपना


शिशु कविता
रावेंद्रकुमार रवि  
रावेंद्रकुमार रवि जी
 एक प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं.
 उन्होंने बाल साहित्य को 
इंटरनेट पर लोकप्रिय बनाया है. 
शाहजहाँपुर आगमन पर 
उन्होंने बाल-मंदिर के पाठकों के लिए  
अपनी एक सुन्दर शिशु कविता भेंट की.  

बंदर जी का सपना

झूल रहे झूला बंदर जी, 
ख़ुद को डाली में लटकाए. 
सोच रहे थे मन ही मन में, 
एक दुल्हनिया अब ले आएँ. 

तभी हाथ से छूटी डाली, 
झट धरती पर आए. 
सपना टूटा, जबड़ा फूटा 
मुँह से निकली हाए.  

**रवि जी का परिचय और उनका रोचक संपादन 
अंतरजाल पर प्रकाशित उनकी बाल पत्रिका 
"सरस पायस" पर देखा जा सकता है. 


एक लड़का ऐसा

एक लड़का ऐसा,
जिसके दांत थे टेढ़े मेढ़े , 
दो दांतों में लगा था कीड़ा ,
एक सड़ गया पूरा . 
जब पापा ने उसके 
तीन  दांत उखड़वाये 
वह चिल्लाया इतने जोर से 
भाग गए सब डर के 
फिर उसने जब मंजन करके 
अपने दांत चमकाए , 
अपनी तारीफ़ सुनकर , 
मन ही मन मुस्काया .  

तितली रानी


 बाल रचना 
सृजन पाण्डेय

तितली रानी तितली रानी
कितनी अच्छी लगती हो
नीली ,पीली,हरी ,गुलाबी
सब रंगों की होती हो
फूलो पर मंडरा-मंडरा कर
उनका रस पी लेती हो
जब कोई पकड़ता तुमको
दौड़ाती हो बहुत उसको .

दो शिशुगीत

चन्दा आओ
शिशुगीत :सतीश मिश्र
 
अम्मा कहती चन्दा आओ,
दूध कटोरा भर कर लाओ।
 पर चन्दा के हाँथ न पैर,
 कैसे कर पाएगा सैर? 
पर यदि चन्दा आ ही जाए
 मै भी उसके घर जाऊंगी, 
चन्दा की अम्मा के हांथोँ
 दूध भात जी भर खाऊंगी।
 टिम टिम तारोँ से पूंछूंगी 
क्योँ जगते हो सारी रात, 
सूरज दादा को समझाऊं 
जो गुस्सा रहता बिन बात।
सवा सेर की शेर
शिशुगीत :सतीश मिश्र
अनू हमारी  प्यारी  है ,
सब बच्चों से न्यारी है .
यूँ तो बड़ी दिलेर है ,
सवा सेर की शेर है .
पर चूहे से डरती है
ऊँ -ऊँ -ऊँ -ऊँ करती है .
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सतीश मिश्र जी 
शाहजहांपुर में रिलाएंस  में कार्यरत हैं .
 संपर्क : 98385 10163

शिशुगीत _ अरविंद पाण्डेय ' भइया '

शिशुगीत 
अरविंद पाण्डेय ' भइया '
गंदे - संदे कपड़े पहने ,
खेल - खाल कर धूल .
बस्ता लेकर गधेराम जी ,
जा पहुँचे स्कूल .
जोड़ -घटाना  , गुणा - भाग से ,
उनका सर चकराया .
पढ़ा - पढ़ा कर हारे टीचर ,
उन्हें न पढना आया .
पढना- लिखना उन्हें न भाया ,
बोले -" पढ़ना बंद .
धोबी जी के घर रहने में
है सच्चा आनंद ."
मोटू जी 
मोटू जी की चाल निराली
धम्मक धम्मक हाथी वाली
किस चक्की का आटा खाते
कैसे मोटे होते जाते ?
आटा वही मैं खाऊँगा 
मैं भी मोटा हो जाऊँगा। 

बन्दर मामा  

बन्दर मामा पहन पाजामा
बडी जोर से दौड़े। 
टांग फंस गयी पाजामे मे
हाथ पैर सब तोड़े। 

 कोयल बहना 
कोयल बहना मानो कहना
प्यारा प्यारा गीत सुनाओ।
अब तो मौसम चला गया है
यह कह कर मत हमें रुलाओ।

अरविंद पाण्डेय ' भइया '
जन्म : खुटार ,शाहजहांपुर , 1976 
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी) 
बच्चों के लिये खूब कविताएँ लिखीं।  
बाल भारती, लोट पोट, बाल हंस, स्वतंत्र भारत, बाल साहित्य समीक्षा, अमर उजाला आदि अनेक पत्रिकाओ मे रचनाएँ छपी. 
पिछ्ले दिनों आकस्मिक निधन हो गया.
मो.- बजरिया ,
खुटार ,शाहजहांपुर .

बंद करो चूहे खाना


शिशुगीत 


चूहा बोला - ' चीं चीं चीं ,
सुनिए बिल्ली मौसी जी ,
रोग प्लेग का फैला है ,
बड़े- बड़ों ने झेला है ,
बंद करो चूहे खाना ,
पड़ सकता है पछताना .

बाल-मंदिर में रचनाएँ प्रेषित करने के नियम


[] बाल मंदिर के लिए ऐसी रचनाओं का सदैव सादर स्वागत है , जिनसे बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन , ज्ञान वर्धन एवं चारित्रिक संवर्धन हो सके . 
[] आप अपनी रचनाएँ हमें ई-मेल अथवा डाक-पते पर भी प्रेषित सकते हैं .
[] रचनाओं के प्रकाशन हेतु कोई शुल्क नहीं लिया जाता और न ही किसी प्रकार का पारिश्रमिक दे पाना हमारे लिए संभव है . 
[] रचनाओं में आवश्यकता अनुसार परिवर्तन भी किया जा सकता है किन्तु यदि लेखक को आपत्ति होगी तो उस रचना को हटा दिया जाएगा. 
[] हमारे इस प्रयास से देश की भावी पीढ़ी को यदि थोडा-सा भी आनंद प्राप्त हो सका तो हमारे लिए  वह बहुत बड़ी उपलब्धि होगी .
[]  इस प्रयत्न के माध्यम से हम बाल साहित्य के उन रचनाकारों को नमन भी कर पा रहे हैं , जो बच्चों को कुछ अद्भुत - नवीन और जीवनोपयोगी सामग्री प्रदान करने की     दिशा में प्रण-प्राण से संलग्न हैं . 
[] हार्दिक शुभकामनाओं सहित .
[]डा. नागेश पांडेय  'संजय', संपादक -'बाल-मंदिर',निकट रेलवे कालोनी , सुभाष नगर, शाहजहांपुर-242 001(उ.प्र.)
[]dr.nagesh.pandey.sanjay@gmail.com