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सोमवार, 18 जुलाई 2011

खेल करो जी -उदय किरोला


बाल कविता : उदय  किरोला 
खेल करो जी  खेल करो ,
आपस में सब मेल करो . 
जीत - हार का होता खेल , 
आपस में तुम रखना मेल . 
यदि जीतो तो ख़ुशी मनाओ , 
हारो भी तो मत पछताओ . 
मत करना जी ठेलम ठेल . 
मिलकर सदा खेलना खेल , 
खेल करो जी  खेल करो ,
आपस में सब मेल करो . 
मेल करो जी मेल करो , 
खेल करो जी  खेल करो ,
उदय  किरोला 
जन्म : 12 मार्च ,1960, कलौटिया ,द्वाराहाट 
शिक्षा : एम्. ए. {हिंदी,समाज शास्त्र  }; एम्. काम
प्रकाशित बाल कविता संग्रह : मीठे जामुन
 संपर्क : संपादक 'बाल प्रहरी ' , जाखन देवी , अल्मोड़ा -उत्तराखंड
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चित्र में : किरोला जी के साथ है सृजन 

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

फूला पेट फुलक्के सा - रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'

बाल कविता : रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'
गोलू है बेहद नटखट,
बातें करता वह अटपट .
खाने में शौकीन बड़ा,
जमकर खाता दही-बड़ा .
गया अकेले वह बाजार ,
खाया पूड़ी संग अचार .
टिक्की और पकौड़ा खाया ,
चाउमीन पर भी ललचाया .
डोसा इडली कड़ू मटर ,
भरा पेट में अटर-पटर .
फूला पेट फुलक्के-सा ,
गुड़-गुड़ करता हुक्के-सा .
डाक्टर आया सुई लगायी ,
बेमन ढेर दवायें खायीं .
तब जाकर बच पायी जान,
गोलू ने फिर पकड़े कान.
अब न खाउँगा चाट मटर,
सादा खाना बस घर पर .

रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'
जन्म : ३१ मई , १९५८ 
शिक्षा  : स्नातक 
बाल साहित्य लेखन एवं संपादन में सक्रिय 

सम्प्रति :  सह-संपादक ,' राष्ट्र धर्म '
संस्कृति भवन , राजेंद्र नगर , लखनऊ 
चित्र  साभार  : गूगल सर्च 

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

गुरुवर तुम्हें प्रणाम -राम निरंजन शर्मा ठिमाऊं


बाल कविता :राम निरंजन शर्मा ठिमाऊं 
गुरुवर तुम्हें प्रणाम !

ठीक समय  पर  शाला आते , 
सत्य बोलना हमें सिखाते .
मीठी-मीठी कविता गाते , 
चाहा कब विश्राम .
नए अनूठे पाठ पढ़ाते , 
हमको सुन्दर लेख  लिखाते . 
नयी-नयी बातें बतलाते.
कभी  न चाहा नाम . 
तुमने जीना हमें सिखाया , 
अंधकार को दूर भगाया.
और ज्ञान का दीप जलाया , 
जाने जगत तमाम . 

राम निरंजन शर्मा ठिमाऊं .
जन्म : 6 ,जून 1928
शिक्षा : एम् . ए. (संस्कृत , अंग्रेजी ), बी. एड. 
दर्जनों पुस्तकें   प्रकाशित .
पिलानी ,राजस्थान में रहते थे .गत दिनों  निधन हो गया . 

मंगलवार, 5 जुलाई 2011

भगवन ! हमको ऐसा वर दो/त्रिलोक सिंह ठकुरेला

किशोर कविता : त्रिलोक सिंह ठकुरेला 
भगवन ! हमको ऐसा वर दो . 

जग के के सारे सद्गुण भर दो . 
हम फूलों जैसे मुस्काएँ , 
सब पर प्रेम-सुगंध  लुटाएँ  .
हम परहित कर ख़ुशी मनाएँ , 
ऐसे भाव ह्रदय में भर दो . 
दीपक बनें , लड़ें हम तम से , 
ज्योतिर्मय हो यह जग हम से .
कभी न हम हम घबराएँ गम से .
तन-मन सबल हमारे कर दो . 
सत्य मार्ग पर बढ़ते जाएँ , 
सबको ही सन्मार्ग दिखाएँ . 
सब मिलकर जीवन-फल पाएँ , 
ऐसा ज्ञान , बुद्धि से भर दो . 
त्रिलोक सिंह ठकुरेला 
 जन्म 01 अक्टूबर 1966 ,नगला मिश्रिया, हाथरस (उत्तर प्रदेश)
प्रकाशन -नया सवेरा (बालगीत संग्रह)

सम्प्रतिउत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर 

 सम्पर्क सूत्र -बंगला संख्या - एल. 99रेलवे चिकित्सालय के सामनेआबूरोड - 307026 (राजस्थान)

मोबा. 9460714267
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चित्र  में : बद्रीनाथ धाम 

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

दूँगी फूल कनेर के /अनंत कुशवाहा

किशोर कविता : अनंत कुशवाहा
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
कुछ पक्के , कुछ कच्चे घर हैं ,
एक पुराना ताल है .
सड़क बनेगी , सुनती हूँ -
इसका नंबर इस साल है .
चखते आना , टीले ऊपर
कई पेड़ हैं बेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
खड़िया -पाटी -कापी-बस्ते
लिखना पढ़ना रोज है .
खेलें-कूदे कभी न फिर तो
यह सब लगता बोझ है .
कई मुखौटे तुम्हें दिखाउंगी
मिटटी के शेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
बाबा ने था पेड़ लगाया ,
बापू ने फल खाए हैं .
भाई कैसे ! उसे काटने
को रहते ललचाए हैं .
मेरे बचपन में ही आ
दिन कैसे अंधेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .
हँसना - रोना तो लगता ही
रहता है हर खेल में .
रूठे , किट्टी कर ली , लेकिन
खिल उठते हैं मेल में .
मगर देखना क्या होता है
मेरी चिट्ठी फेर के .
आना मेरे गाँव , तुम्हे मैं
दूँगी फूल कनेर के .

अनंत कुशवाहा
जन्म : १० जुलाई , १९३८ , जौनपुर (उ.प्र.)
बाल हंस के संपादक रहे .
बच्चों के लिए बहुत ही सुंदर व्यंग्य चित्र बनाए .
 ठोला राम , कूँ-कूँ , मुनीम जी उनके प्रसिद्द चरित्र हैं . 
जयपुर में निधन हो गया . 
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यह किशोर कविता 
'बाल हंस' के जनवरी, द्वितीय, १९९५ अंक में 
इस रूप में प्रकाशित हुयी थी.