tag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post4559577327435254047..comments2023-06-25T16:37:31.828+05:30Comments on बाल-मंदिर: निरंकारदेव सेवक का शिशुगीत : लाल टमाटरडॉ. नागेश पांडेय संजयhttp://www.blogger.com/profile/02226625976659639261noreply@blogger.comBlogger9125tag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-62246042498597542362011-05-14T19:04:57.791+05:302011-05-14T19:04:57.791+05:30आदरणीय भाई साहब , आज ही सर्वेश्वर जी कविता पोस्ट क...आदरणीय भाई साहब , आज ही सर्वेश्वर जी कविता पोस्ट की है .डॉ. नागेश पांडेय संजयhttps://www.blogger.com/profile/02226625976659639261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-25173177164394146302011-05-14T19:02:54.574+05:302011-05-14T19:02:54.574+05:30आदरणीय भाई साहब , आपकी टिप्पणी क्यों गायब हो रहीं ...आदरणीय भाई साहब , आपकी टिप्पणी क्यों गायब हो रहीं हैं . बात मेरी समझ में नहीं आ रही . ...फ़िलहाल अपने मेल बॉक्स से उसे पुन: प्रस्तुत कर रहा हूँ -----<br /><br />Prakash Manu ने आपकी पोस्ट " लाल टमाटर " पर एक टिप्पणी छोड़ी है: <br /><br />प्रिय नागेश, सेवक जी की यह कविता बहुत बार पढ़ी हुई है, पर इतनी नायाब है कि जितनी बार भी पढ़ो, अच्छी लगती है। बच्चा ही नहीं, लाल टमाटर भी जैसे अपने नटखट चेहरे और शरारती छवि के साथ मन को मोह लेता है।...और यह बात कहते हुए याद दिलाना जरूरी है नागेश कि सेवक जी को अपने समय में कितनी कठिन लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं उन लोगों से जो बाल कविता को महज एक उपदेशात्मक चीज मानते थे। सेवक जी ने बड़ी हिम्मत और साफगोई से कहा कि ये बाल कविताएं नहीं हैं। जो कविता बच्चे के मन को आनंदित न कर पाए, वह बाल कविता तो हो ही नहीं सकती। यह बहुत सही लेकिन सख्त कसौटी थी, और बगैर तमाम लोगों की नाराजगी की परवाह किए, इसी आधार पर उन्होंने हिंदी बाल कविता का विस्तृत मूल्यांकन किया। और यों बाल साहित्य की आलोचना में उन्होंने जितना बड़ा योगदान किया, उसे अभी तक ठीक-ठीक समझा ही नहीं गया। सेवक जी का यह इतना बबड़ा योगदान है कि यहाँ बाल साहित्य का कोई बड़ा से बड़ा लेखक-आलोचक उनके आगे नहीं ठहर पाता।<br />बहरहाल, यह सब तो प्रसंगवश है। फिलहाल बात तो लाल टमाटर की हो रही है और बच्चे और लाल टमाटर की यह मीठी बतकही मन को लुभा लेने वाली और बेजोड़ है। टमाटर की लाली से भरपूर इस कविता को पढ़वाने के लिए आभार। सस्नेह, प्र.म. <br /><br /><br /><br />Prakash Manu द्वारा बाल-मंदिर के लिए १२ मई २०११ ८:३४ पूर्वाह्न को पोस्ट किया गयाडॉ. नागेश पांडेय संजयhttps://www.blogger.com/profile/02226625976659639261noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-8094017519165824502011-05-14T15:54:09.121+05:302011-05-14T15:54:09.121+05:30प्रिय नागेश, इस कविता पर एक बहुत विस्तृत टिप्पणी ल...प्रिय नागेश, इस कविता पर एक बहुत विस्तृत टिप्पणी लिखी थी। पता नहीं कैसे गायब हो गई। कोई बात नहीं, पर इतना दोहराना चाहूँगा कि इस कविता में एक नहीं, दो नटखट बच्चे हैं। लाल टमाटर का चेहरा भी किसी नटखट बच्चे से कम नहीं, जिस पर एक बड़ी शरारती मुसकान मुझे नजर आती है इस कविता को पढ़ते समय। धरोहर में सचमुच अच्छी चीजें जा रही हैं। सर्वेश्वर, स्वर्ण सहोदर, विद्याभूषण विभु का भी कुछ देना चाहिए। सस्नेह, प्र.म.Prakash Manu प्रकाश मनुhttps://www.blogger.com/profile/04172383673707393967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-7615846648022122182011-05-13T22:28:35.978+05:302011-05-13T22:28:35.978+05:30ये तो सेवक जी का काफी खूंखार गीत है... एकदम लालम ल...ये तो सेवक जी का काफी खूंखार गीत है... एकदम लालम लाल गीत...<br />भूख को उद्दीप्त करती शब्दावली.... हौसले को बढ़ावा देती ध्वन्यात्मकता. .. है न एकदम हिंसक गीत :)<br /><br />पर निरंकार जी गीत का अंत होते-होते तक जैन मुनि क्यों बन जाते हैं?प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00211742823973842751noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-71748076326548283892011-05-12T21:04:08.867+05:302011-05-12T21:04:08.867+05:30प्रिय नागेश, सेवक जी की यह कविता बहुत बार पढ़ी हुई...प्रिय नागेश, सेवक जी की यह कविता बहुत बार पढ़ी हुई है, पर इतनी नायाब है कि जितनी बार भी पढ़ो, अच्छी लगती है। बच्चा ही नहीं, लाल टमाटर भी जैसे अपने नटखट चेहरे और शरारती छवि के साथ मन को मोह लेता है।...और यह बात कहते हुए याद दिलाना जरूरी है नागेश कि सेवक जी को अपने समय में कितनी कठिन लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं उन लोगों से जो बाल कविता को महज एक उपदेशात्मक चीज मानते थे। सेवक जी ने बड़ी हिम्मत और साफगोई से कहा कि ये बाल कविताएं नहीं हैं। जो कविता बच्चे के मन को आनंदित न कर पाए, वह बाल कविता तो हो ही नहीं सकती। यह बहुत सही लेकिन सख्त कसौटी थी, और बगैर तमाम लोगों की नाराजगी की परवाह किए, इसी आधार पर उन्होंने हिंदी बाल कविता का विस्तृत मूल्यांकन किया। और यों बाल साहित्य की आलोचना में उन्होंने जितना बड़ा योगदान किया, उसे अभी तक ठीक-ठीक समझा ही नहीं गया। सेवक जी का यह इतना बबड़ा योगदान है कि यहाँ बाल साहित्य का कोई बड़ा से बड़ा लेखक-आलोचक उनके आगे नहीं ठहर पाता।<br />बहरहाल, यह सब तो प्रसंगवश है। फिलहाल बात तो लाल टमाटर की हो रही है और बच्चे और लाल टमाटर की यह मीठी बतकही मन को लुभा लेने वाली और बेजोड़ है। टमाटर की लाली से भरपूर इस कविता को पढ़वाने के लिए आभार। सस्नेह, प्र.म.Prakash Manu प्रकाश मनुhttps://www.blogger.com/profile/04172383673707393967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-38314565866880023312011-04-25T18:49:33.215+05:302011-04-25T18:49:33.215+05:30बच्चों की मजेदार कविता .बच्चों की मजेदार कविता .Unknownhttps://www.blogger.com/profile/17047089222355226405noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-77944776570338009302011-04-18T06:12:30.081+05:302011-04-18T06:12:30.081+05:30बहुत सुंदर कविता....बहुत सुंदर कविता.... Chaitanyaa Sharmahttps://www.blogger.com/profile/17454308722810077035noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-30186822250493856152011-04-17T18:21:44.366+05:302011-04-17T18:21:44.366+05:30बहुत बढ़िया बाल कविता . इसका तो मंचन भी हो सकता ह...बहुत बढ़िया बाल कविता . इसका तो मंचन भी हो सकता है .Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4418903095572581782.post-58828256412476250872011-04-16T19:12:15.888+05:302011-04-16T19:12:15.888+05:30बहुत बढ़िया बालकविता!बहुत बढ़िया बालकविता!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.com