बकरे दादा लेकर आए ,
मोटा एक सिगार .
दियासलाई में बाकी थीं ,
बची तीलियाँ चार .
एक - एक कर लगे जलाने
थे शौक़ीन अनाड़ी .
धुआँ नहीं निकला सिगार से ,
मगर जल गई दाढ़ी .
शंभू प्रसाद श्रीवास्तव
जन्म 15 जून 1936 , वाराणसी
शेर सखा का सम्पादन किया
बच्चों के लिए दर्जनों पुस्तकें लिखीं .
निधन : कोलकाता में
चित्र साभार गूगल सर्च
हा-हा-हा!... मजेदार कविता!!!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक बाल गीत..
जवाब देंहटाएंहा हा हा ...बहुत मजेदार.... शुक्रिया
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी!!
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक बाल गीत..
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