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गुरुवार, 22 नवंबर 2012

मधुसूदन साहा की बाल कविता : मुर्गा मामा


बाल कविता : मधुसूदन  साहा  
चित्र  : ज्योति कश्यप 
मुर्गा मामा, मुर्गा मामा, 
क्यों तुम बांग लगाते  हो ? 
जब आती है नींद जोर से, 
आकर मुझे जगाते हो। 
तुमको नींद न आती है, 
निंदिया नहीं सताती है।
पौ  फटने से पहले ही,
अपना बिगुल बजाते हो। 
कलगी मुझको भाती  है,
लाली मुझे लुभाती है। 
क्या इसको दमकाने को,
पहली किरण लगाते हो ?
       मधुसूदन  साहा
जन्म : 15 जुलाई 1940 , धमसई,  गोड्डा, झारखण्ड 
शिक्षा एम. ए., पी-एच. डी. 
कई पुस्तकें प्रकाशित 
संपर्क :  डी 90
कोयल नगर, राउरकेला- 769014



  

शनिवार, 10 नवंबर 2012

मुबीना खान की बाल कविता : कुछ ऐसा हो जाए.....

बाल कविता : मुबीना खान


कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए

धरती अंबर चन्दा सूरज
खेलें आँख मिचौली 
धूप चाँदनी वर्षा बादल
जमकर करें ठिठोली
चन्दा आए धरती पर फिर..
यहीं कहीं खो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए

चन्दा की बुढ़िया से भी तो
करनी हैं कुछ बातें
ठिठुर-ठिठुर कर ठंडक में 
कैसे कटती हैं रातें
हम काते उसका चरखा
बुढ़िया रानी सो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए.

ठंडा ठंडा होता चन्दा
उसको हम गर्मी दें
गर्मी में जब बहे पसीना 
हम उससे ठंडक लें
फिर काहे की सर्दी गर्मी
ये आए वो जाए. 
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए


मुबीना खान,
  प्रवक्ता  बी. एड. विभाग, 
लखीमपुर खीरी यू.पी.