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शनिवार, 28 दिसंबर 2019

इंदिरा गौड़ के बाल गीत


सूरज दादा 
 इंदिरा गौड़ 

तुम बिन चले न जग का काम,
सूरज दादा राम राम!

लादे हुए धूप की गठरी
चलें रात भर पटरी-पटरी,
माँ खाने को रखती होगी
शक्कर पारे, लड्डू, मठरी।
तुम मंजिल पर ही दम लेते,
करते नहीं तनिक आराम!

कभी नहीं करते हो देरी
दिन भर रोज लगाते फेरी
मुफ्त बाँटते धूप सभी को-
कभी न करते तेरा मेरी।
काँधे गठरी धर चल देते-
साँझ हाथ जब लेती थाम।

चाहे गर्मी हो या जाड़ा
तुम्हें ज़माना रोज अखाड़ा,
बोर कभी तो होते होगे
रटते-रटते वही पहाड़ा।
सब कुछ गड़बड़ कर देते हैं,
बादल करके चक्का जाम!
 घुमक्कड़ चिड़िया 
इंदिरा गौड़
अरी! घुमक्कड़ चिड़िया सुन
उड़ती फिरे कहाँ दिन-भर,
कुछ तो आखिर पता चले
कब जाती है अपने घर।

रोज-रोज घर में आती
पर अनबूझ पहेली-सी
फिर भी जाने क्यों लगती
अपनी सगी सहेली-सी।
कितना अच्छा लगता जब-
मुझे ताकती टुकर-टुकर!

आँखें, गरदन मटकाती
साथ लिए चिड़ियों का दल
चौके में घुस धीरे-से
लेकर गई दाल-चावल।
मुझको देख उड़न-छू क्यों,
क्या लगता है मुझसे डर!

कितना अच्छा होता जो
मैं भी चिड़िया बन जाती,
जाकर पार बादलों के
चाँद-सितारे छू आती।
अपना फ्रॉक तुझे दूँगी,
तू मुझको दे अपने पर।
जन्म : १९ दिसंबर १९४३, मथुरा 
निधन : २७  दिसंबर,२०१९, सहारनपुर