बाल-मंदिर परिवार

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मंगलवार, 28 जून 2011

मेरी अम्मा सबसे अच्छी/शकुन्तला कालरा

 बाल कविता : डा. शकुन्तला कालरा 
मेरी अम्मा  सबसे अच्छी , 
हम  सबको वह  करतीं प्यार .
डूबी रहती सदा काम में , 
खुश रहता सारा परिवार .
बड़े सवेरे उठ जाती हैं  ,
निबटाती सब घर  के काम .
कपडे  -लत्ते -झाड़ू  -पोंछा 
लेती कब  थकने  का नाम ?
पूजा करके हमें जगातीं , 
सो जाते हम बारम्बार .
हम सब हँसते कैसी अम्मा 
याद न रहता क्यों इतवार ?
माँ क्या जाने छुट्टी होती,
क्यों भाता हमको इतवार !
सूरज जैसी मेरी अम्मा ,
काम करें वह सातों वार .
झोली भर-भर प्यार बाँटतीं ,
जी भर करतीं  लाड़-दुलार .
नन्हें-मन को खूब समझतीं , 
प्रभु का वह सुंदर  उपहार .
-=========-

डा. शकुन्तला कालरा 
 जन्म : 11 सितम्बर ,1946 ,  बक्खर , पाकिस्तान 
प्रमुख पुस्तकें : बाल साहित्य का स्वरुप और रचना संसार , बाल साहित्य के युग निर्माता : जय प्रकाश भारती , हिंदी बाल साहित्य विमर्श सहित दर्जनों पुस्तकों की सर्जना की .
सम्प्रति :  रीडर , दिल्ली विश्व विद्यालय 
संपर्क : एन. डी.-57, पीतमपुरा , दिल्ली-88 

शनिवार, 18 जून 2011

खुली लाटरी गधेराम की -रमेश चन्द्र पंत


बाल कविता :रमेश चन्द्र पंत 
खुली लाटरी 
गधेराम की , 
वह भी एक करोड़ .
भूल गए हैं
 गुणा-भाग सब 
और घटना-जोड़ .
फूट  रहे 
मन ही मन लड्डू
 जाएँगे अब फ़्रांस . 
नए ज़माने
 के सीखेंगे 
फिर पेरिस में डांस .
ढेंचू-ढेंचू 
भूल नए अब 
पढने होंगे पाठ . 
मुक्ति मिलेगी 
बोझे से भी 
गजब के होंगे ठाठ . 
नए-नए 
माडल की होगी 
महँगी  कारें पास .
और नहीं 
अब खानी होगी 
उन्हें कभी भी घास . 
========
जन्म : १० अगस्त , बलरामपुर (उ.प्र.)
शिक्षा : एम्.ए. (हिंदी अंग्रेजी );बी.एस-सी .; बी. एड.
प्रकाशित पुस्तकें : 101 बाल कविताएँ ,बाल मन की प्रतिनिधि कहानियाँ 
राजकीय पालीटेक्निक द्वाराहाट में सेवारत .
संपर्क : विद्यापुर , द्वाराहाट , अल्मोड़ा

बुधवार, 15 जून 2011

क्या करें ?-डा. सुरेन्द्र विक्रम


बाल गीत : डा. सुरेन्द्र विक्रम 
हो गयी मुश्किल पढाई , क्या करें ,
पुस्तकों की बाढ़ आई , क्या करें ?
क्या मजे थे , नर्सरी-के.जी. के दिन ,
उन दिनों की याद आई क्या करें ?
खेलने जाते थे बस्ता फेंककर ,
सोचकर आती रुलाई , क्या करें ?
कल हुआ था टेस्ट , दस में दो मिले ,
हो रही है जग हँसाई ,क्या करें ?
क्यों मिले हैं अंक इतने कम , कहो , 
पूछते हैं ताऊ- ताई , क्या करें ?
हर विषय रटना है चाहें जो भी हो , 
कुछ नहीं देता सुझाई , क्या करें ?
अब परीक्षा से ही डर लगने लगा है ,
 अकल भी लगती पराई, क्या करें ?
नींद कोसो दूर है , आँखे खुलीं ,
 पुतलियों में धुंध छाई , क्या करें ?
किसको छोड़े , क्या पढ़ें  चिंता है ये ,
 तुम ही बोलो मेरे भाई , क्या करें ? 

डा. सुरेन्द्र विक्रम 

हिंदी के सशक्त एवं सक्रिय बाल साहित्यकार तथा  समीक्षक 
जन्म :1 जनवरी , बरोखर , इलाहबाद 
शिक्षा : एम्.ए(हिंदी) ; पी-एच. डी. 
बाल साहित्य  आलोचना की चार पुस्तकों सहित बच्चों के लिए कई पुस्तकें प्रकाशित . 
संपर्क : सी -1245, राजाजीपुरम , लखनऊ 

चित्र साभार : गूगल सर्च 

मंगलवार, 14 जून 2011

चिडिया ओ चिड़िया -हरिवंशराय बच्चन



बाल कविता : हरिवंशराय बच्चन 

चिडिया ओ चिड़िया 
कहाँ है तेरा घर ?
उड़-उड़ आती है
 जहाँ से फर-फर ?
उड़-उड़ जाती है 
जहाँ को  फर-फर ?

इमली के एक 
बड़े भारी पेड़ पर , 
घास-फूस-तिनकों से 
बना मेरा घर .
उड़-उड़ आती हूँ
वहाँ से फर-फर ?
उड़-उड़ जाती हूँ 
हाँ को फर-फर ?
=============
 हरिवंशराय बच्चन 
 बच्चन जी हिंदी के महान कवि हैं . 
उन्होंने बच्चों के लिए भी सहज -सरस  कविताएँ लिखीं .
 बच्चों के लिए
  उनकी कविताओं के चार संकलन छपे. 



चित्र गूगल सर्च से साभार

बुधवार, 8 जून 2011

चूहेमल का देखो खेल - कन्हैया लाल मत्त




चूहेमल का देखो खेल , 
चले ऊँट की पकड़ नकेल . 
बुड- बुड-बुड-बुड बोला ऊँट - 
''मुझे पिला पानी दो घूंट .'' 
========
कन्हैया लाल मत्त 
हिंदी बाल साहित्य के सशक्त  हस्ताक्षर  . बच्चों के लिए मजेदार शिशुगीत लिखे . गाजियाबाद में रहते थे. 

चित्र साभार - गूगल सर्च 

रविवार, 5 जून 2011

मूंछे नत्थू लाल की - डा. रोहिताश्व अस्थाना


गुरुवार, 2 जून 2011

खाऊँगी अब दही-बड़ा - उषा यादव




.शिशुगीत: डा. उषा यादव 
ए बी सी डी ई एफ जी ,
पढ़कर सारी अंग्रेजी .
 वन्या बोली-''बहुत पढ़ा,
खाऊँगी अब दही-बड़ा.''
माँ बोली तब हँसकर के -
''उल्टी-पुस्तक को धर के , 
झूँठ-मूँठ का पाठ पढ़ा ,
बिटिया कैसा दही-बड़ा ?''
डा. उषा यादव
जन्म : २ अप्रैल , १९४८ , कानपुर 
शिक्षा : एम्. ए. (हिंदी, इतिहास) 
पी-एच.डी. ; डी. लिट. 
बच्चों के लिए कहानी , उपन्यास , और कविताओं की कई पुस्तकें प्रकाशित . 
संपर्क: ७३, नार्थ ईदगाह कालोनी , आगरा  

बुधवार, 1 जून 2011

एक पहेली मैं कहूँ - अमीर खुसरो




पहेलियाँ : अमीर खुसरो
(1)
एक थाल मोती से भरा , 
सबके सर पर औंधा धरा .
(2)
एक पहेली मैं कहूँ 
सुन ले मेरे पूत .
बाँध गले में उड़ गयी
सौ गज लम्बा सूत .
(3)
बीसों का सर काट लिया , 
ना मारा ना/खून किया 


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