बाल-मंदिर परिवार

हमारे सम्मान्य समर्थक

शनिवार, 12 मई 2018

सूरज मामा/राजकुमार जैन 'राजन'


सूरज   मामा  से  हम  कहते,
क्यों    इतने  गुस्से  में  रहते?

हरदम   रहते   पीले,   लाल,
लगते  हो  सोने  का   थाल।

क्यों  हैं   इतने   तीखे   तेवर?
आग बरसती है धरती  पर।

दूर  - दूर   तुमसे   जाते   हैं
हम   गर्मी   से  घबराते  हैं।



मामी से क्या हुई  लड़ाई ?
इसीलिए गर्मी फैलाई ।
अपना   गुस्सा   छोड़ो  न,
 ठण्डा पानी पी लो न ! 
(मौलिक और स्वरचित कविता) 
राजकुमार जैन राजन
जन्म :  24 जून 1969, आकोला, राजस्थान
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)
प्रकाशन- ’नेक हंस’, ‘लाख टके की बात’, ‘झनकू का गाना’, ‘आदर्श मित्र’,‘बच्चों की सरकार’, ‘आदिवासी बालक’,‘पशु पक्षियो के गीत’, ‘एक् था गुणीराम’, ‘सबसे अच्छा उपहार’, ‘प्यारी छुट्टी जिन्दाबाद’, ’बस्ते का बोझ’, ’चिड़िया की सीख’, ‘जन्म दिन का उपहार’, ‘मन के जीते जीत’, पेड़ लगाएं’ 
लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : आकाशवाणी व दूरदर्शन
संपादन- कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन/बाल साहित्य विशेषांकों  का संपादन
पुरस्कार व सम्मान :  सौ से अधिक सम्मान 
विशेष : बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन
संपर्क : चित्रा प्रकाशन,
आकोला- 312205, 
चित्तौडगढ़ (राजस्थान)
मोबाइल- 09828219919


सोमवार, 7 मई 2018

कमलेश द्विवेदी का बाल गीत - हमारे दादा जी

सीधे-सादे नेक हमारे दादा जी. 
लाखों में हैं एक हमारे दादा जी. 
हमें खिलाते लड्डू-पेड़ा-रसगुल्ला, 
टॉफी-बिस्कुट-केक हमारे दादा जी. 

सैर करायें, कहें कहानी, सँग खेलें, 
करते काम अनेक हमारे दादा जी. 

चाहे जितना खेलें उधम मचायें हम,
नहीं लगाते ब्रेक हमारे दादा जी. 
पापा-मम्मी डाँटें-मारें ग़लती पर, 
क्षमा करें मिस्टेक हमारे दादा जी.
 कमलेश द्विवेदी 
पिता: स्व. प्रेमनाथ द्विवेदी "रामायणी"
माता: श्रीमती सुशीला देवी
जन्म तिथि: 25अगस्त 1960
शिक्षा: परास्नातक,विधि स्नातक
सृजन: मुख्यतः हास्य-व्यंग्य रचनाएँ साथ ही गीत-ग़ज़ल एवं बालगीत भी
प्रकाशन: पत्र पत्रिकाओं में बालगीत प्रकाशित
सम्मान: चिल्ड्रन बुक ट्रस्ट,भारतीय बाल कल्याण संस्थान,सुभाष चिल्ड्रेन सोसायटी आदि संस्थाओं से बाल साहित्य सृजन हेतु सम्मानित
सम्प्रति: एडवोकेट/स्वतंत्र लेखन 
संपर्क: 119/427 दर्शन पुरवा,कानपुर-208012 (उ.प्र.)
मो.09415474674/09140282859


शुक्रवार, 26 जनवरी 2018

शिशुगीत : उत्सव गणतंत्र दिवस का_विष्णुकांत पांडेय

उत्सव  गणतंत्र दिवस का 

विष्णुकांत पांडेय 

त्सव था गणतंत्र दिवस का, 
खूब लगी थी होड़. 
गीदड़ जी ने कुश्ती जीती,
कछुआ जी ने दौड़.
जैसे  जी  हाथी जी आए 
और लगाई जम्प,
कहकर बन्दर जी यों  भागे 
यह कैसा भूकंप.
विष्णुकांत पांडेय 
जन्म -07 मई 1933

कृतियां - गुड़िया रानी हँसे हँसाए, मेरे शिशु गीत, कुछ पत्ते कुछ फूल, जय बोलो गांधी बाबा कीता चल मुसकाता चल, सारे गीत तुम्हारे गीत, आओ गीत सुनाएँ, चाचा नेहरू, खट्टे हैं अंगूर
निधन- 22 सितम्बर 2002

दामोदर अग्रवाल की बाल कविताएं

टीचर जी


टीचर जी, ओ टीचर जी
गिनती खूब सिखाओ जी,
लेकिन पहले बल्बों में
बिजली तो ले आओ जी!
सूरज जी, ओ सूरज जी
कभी देर से आओ जी,
रोज पहुँचकर, सुबह सुबह
यों ना मुझे जगाओ जी!
छुट्टी जी, ओ छुट्टी जी
लो यह टॉफी खाओ जी,
बस, इतनी सी विनती है
जल्दी-जल्दी आओ जी।
पापा जी, ओ पापा जी
बहुत न रोब जमाओ जी,
दूध कटोरी में पीकर
चम्मच से खिलाओ जी।

कोई लाके मुझे दे

कुछ रंग भरे फूल
कुछ खट्ठे-मीठे फल,
थोड़ी बाँसुरी की धुन
थोड़ा जमुना का जल—
कोई लाके मुझे दे!
एक सोना जड़ा दिन
एक रूपों भरी रात,
एक फूलों भरा गीत
एक गीतों भरी बात—
कोई लाके मुझे दे!
एक छाता छाँव का
एक धूप की घड़ी,
एक बादलों का कोट
एक दूब की छड़ी—
कोई लाके मुझे दे!
एक छुट्टी वाला दिन
एक अच्छी सी किताब,
एक मीठा सा सवाल
एक नन्हा सा जवाब—
कोई लाके मुझे दे!

जादू  की एक गठरी

जादू की एक गठरी लाऊँ
बच्चों में बच्चा बन जाऊँ!
एक जेब से शेर निकालूँ
एक जेब से भालू,
शेर बहुत भोला-भाला हो
भालू हो झगड़ालू।
दोनों को झटपट खा जाऊँ,
जादू की जो गठरी लाऊँ।
चूहा एक निकल गठरी से
हाथी को दौड़ाए,
हाथी डर से थर-थर काँपे
बिल में जा छुप जाए।
चूहे का फोटो छपवाऊँ,
जादू की जो गठरी लाऊँ।
एक जेब से पिज्जा निकले
एक जेब से डोसा,
परियाँ पिज्जा खाएँ, तोता
माँगे गरम समोसा।

बड़ी शरम की बात

बड़ी शरम की बात है बिजली,
बड़ी शरम की बात!
जब देखो गुल हो जाती हो
ओढ़ के कंबल सो जाती हो।
नहीं देखती हो यह दिन है, या यह काली रात है बिजली
बड़ी शरम की बात,
बड़ी शरम की बात है बिजली, बड़ी शरम की बात!

हम गाना गाते होते हैं,
या खाना खाते होते हैं,
पता नहीं चलता थाली में, किधर दाल औ भात, है बिजली
बड़ी शरम की बात,
बड़ी शरम की बात है बिजली, बड़ी शरम की बात!

जाओ मगर बता के जाओ,
कुछ तो शिष्टाचार दिखाओ,
नोटिस दिए बिना चल देना, तो भारी उत्पात है बिजली
बड़ी शरम की बात,
बड़ी शरम की बात है बिजली, बड़ी शरम की बात!

दामोदर अग्रवाल 
जन्म- 4 जनवरी, 1932, वाराणसी, उत्तर प्रदेश 
मोतीलाल नेहरू कालेज में अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे. 
बच्चों और खासकर किशोरों के लिए बेजोड़ लेखन. 
निधन – 1 जनवरी, 2009, बंगलौर