बाल-मंदिर परिवार

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मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

डॉ. राष्ट्रबंधु की बाल कविताएं

डॉ. राष्ट्रबंधु की बाल कविताएं 
नयी डायरी

नयी डायरी मुझे मिली है
 इसमें अपना नाम लिखूँगा
 होमवर्क या काम लिखूँगा। 
किसने मारा, किसने डाँटा
 बदनामों के नाम लिखूँगा। ।

इतिहासों में कली खिली है।
 नयी डायरी मुझे मिली है।।

कारटून हैं मुझे बनाने, 
हस्ताक्षर करने मनमाने ।
 आप अगर रुपये देंगे तो
 बन जायेंगे जाने-माने । 
 भेंट दीजिए, कलम हिली है। 
नयी डायरी मुझे मिली है ।

तेन्दुलकर के छक्के पक्के 
कैच कुंबले के कब कच्चे । 
किया सड़क पर पूरा कब्जा '
बचके चलो', बोलते बच्चे । ।

लाई लप्पा टिली लिली है।
 नयी डायरी मुझे मिली है।।

कविता - वविता

खाना वाना 
रोटी ओटी
 गाड़ी-वाड़ी ला ।

आँधी-गाँधी सात समुन्दर 
लाड़ी खाड़ी जा ।।

डोसा ओसा 
माल समोसा 
ऊटी सूटी छा ।

कासीवासी
 मथुरा वथुरा 
पेड़-वेड़े खा ।
 पानी-वानी, 
नाना-नानी
आनाकानी ना ।
 हा हा ही ही
 हे हे हो हो 
हाँ हाँ हाँ हाँ गा ।

बेईमान चूहे

चूहे बेईमान मेरा टोस ले गए।
टोस ले गऐ सन्तोष ले गए। ।

बेबी से मैंने जिसको छिपाया ।
 डाली को दिखता करके चिढ़ाया।
खा भी न पाया, दोष दे गए। 
चूहे बेईमान मेरा टोस ले गए ।
डाकू निडर मेरा होश ले गए।
 चूहे बेईमान मेरा टोस ले गए।

ना उनके खेती, ना उनके पाती।
चूल्हा बिना फूँके खाते चपाती।
मेरी दवाई जल्दी से खाते । 
बाबा की लाठी चाहे छिपाते ।

नाना की ऐनक, छोड़ क्यों गए।

चूहे बेईमान मेरा टोस ले गए।


लोरी

कंतक थैयाँ घुनूँ मनइयाँ । 
चन्दा मामा पइयाँ पइयाँ ।

यह चन्दा चरवाहा है 
नीले नीले खेत में। 
बिलकुल संतमेंत में 
रत्नों भरे रेत में ।

किधर भागता लइयाँ पइयाँ ।

कंतक थैयाँ घुनूँ मनइयाँ । 
अंधकार है घेरता ।
 टेढी आँखो हेरता 
चाँद नहीं मुँह फेरता । 
राकेट को है टेरता ।

मुन्ने को लूँगा मैं कइयाँ | 
कंतक थैयाँ घुनूँ मनइयाँ। ।

मिट्टी के महलों के राजा । 
ताली तेरी बढ़िया बाजा । छोटा छोटा छोकरा । 
सिर पर रक्खे टोकरा । 
 राम बनाये डोकरा ।

बने डोकरा करूँ बलइयाँ |
कंतक थैया घुनूँ मनइयाँ । ।

मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

दिव्यांशी की पहली कविता 'आने वाले हैं सर !'

आने वाले हैं सर 
कविता : दिव्यांशी शर्मा
पंखा चलता सर सर सर,
आने वाले हैं मेरे सर।
पूछेगें, 'क्या है करसर?'
तब घूमेगा मेरा सर!
जैसे धरती लगाए चक्कर,
देखूँगी मैं इधर-उधर ।
तभी दिखेगा कम्प्यूटर,
आ जाएगा आंसर।
दिव्यांशी शर्मा
कक्षा 4
रेयान इंटरनेशनल स्कूल,
शाहजहाँपुर

शनिवार, 25 अप्रैल 2020

राघव शुक्ल की बाल कविता : अनोखी दावत

चित्र साभार : गूगल
अनोखी दावत
चंपक चाचा दावत पहुंचे
भूख लगी थी भारी
और पेट में कूद रहे थे
चूहे बारी बारी

सबसे पहले जी भर खाये
छोले और भटूरे
फिर चटनी सँग बीस बताशे
गिनकर खाये पूरे

फिर टिक्की खस्ते पर आए
खाया इडली डोसा
मटर पकौड़ी तवा पराठा
छोड़ा नहीं समोसा

मखनी दाल वेज बिरियानी
खाई हलुआ पूरी
फिर पनीर के साथ छक गए
दस रोटी तंदूरी

रबड़ी और इमरती खायी
फिर रसगुल्ला खाया
और बनाना शेक पिया फिर
मीठा पान चबाया

चलते चलते मेजबान को
सौ का दिया लिफाफा
एक हजार का भोजन खाया
नौ सौ हुआ मुनाफा
राघव शुक्ल
पिता-श्री राम अवतार शुक्ल
माता-श्रीमती मालती शुक्ला
जन्मतिथि- 25.06.1988
जन्मस्थान- मोहम्मदी लखीमपुर खीरी उ प्र
शिक्षा -विज्ञान स्नातक, शिक्षा स्नातक, परास्नातक(गणित इतिहास,अंग्रेजी,हिन्दी)
सम्प्रति-अध्यापक बेसिक शिक्षा
लेखन विधाएं-गीत,गीतिका,दोहा
प्रकाशन-साहित्य मंजरी, गीत गागर, हस्ताक्षर, बालवाटिका,  कविताकोश संग्रह ,साहित्यगंधा, राष्ट्र राज्य,अमर उजाला काव्य व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशन
बाल कविता,बाल गीत लिखने में विशेष अभिरुचि।
पता-राघव शुक्ल
      रामलीला मैदान, पोस्ट मोहम्मदी
        जिला लखीमपुर खीरी
        पिन 262804
   मेल-raghavshukla.rtr@gmail.com
मोबाइल 9956738558

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

डॉ. मधु भारती की बाल कविता 'चिड़िया फुर्र उड़ी'

इक चिड़िया कूदी आँगन में,
ढूँढ रही कुछ दाने।
पाए कुछ चावल के दाने,
लगी कुतर कर खाने।
मस्ती में भर, कभी फुदकती,
चीं चीं लगती गाने।
मुँह में एक मिर्च का टुकड़ा,
पहुँच गया अनजाने।
सी सी कर चिल्लाई, नल पर
पहुँची वह घबराकर।
ताली बजा हँसे सब बच्चे,
फुर्र उड़ी शरमाकर।
डॉ. मधु भारती

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

गौरव वाजपेयी 'स्वप्निल' की बाल कविता 'चलो चलें! नानी के घर'

हवा चल रही सर सर सर
चलो चलें! नानी के घर।
गर्मी की आई छुट्टी
है ना ! कितना शुभ अवसर।
बड़की मौसी जी के सँग
गुड्डू भइया आएँगे।
काकू की बगिया जाकर
आम तोड़ हम खाएँगे।
वहाँ हमारे सब मामा,
फिर बोलो जी किसका डर!
चिंटू मामा बोले थे 
कैरम-लूडो लाएँगे।
रोज शाम चिड़िया-बल्ला
खेलेंगे-खिलवाएँगे।
रोज रात हम खेलेंगे 
अंत्याक्षरी बैठ छत पर!
थोड़े दिन को बस्ते की
कर दी है हमने छुट्टी।
आओ! कथा-कहानी की
पी जाएँ मिलकर घुट्टी।
नाना जी  भी आए हैं 
कई किताबें कल लेकर!
गौरव वाजपेयी 'स्वप्निल'
जन्मतिथि-15 अगस्त 1977
जन्मस्थान-शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा-एम बी ए (मार्केटिंग इकोनॉमिक्स) (लखनऊ विश्वविद्यालय)
प्रकाशन : जनसत्ता, दैनिक ट्रिब्यून, राजस्थान पत्रिका, पंजाब केसरी, दैनिक अमृत विचार, दैनिक हिंदी मिलाप, दैनिक विजय दर्पण टाइम्स, दिन प्रतिदिन, बाल प्रभात, बाल वाटिका, बाल किलकारी, अभिनव बालमन, बच्चों का देश, चिरैया, बाल भारती, स्नेह, टाबरटोली, बालप्रभा, उजाला, संगिनी, साहित्य समीर दस्तक, उपनिधि, ककसाड़, मुक्त विचारधारा, इन्दौर समाचार, प्रिय पाठक, दैनिक किरणदूत, घटती घटना आदि पत्र/पत्रिकाओं में बालकविताएँ/बालकहानियाँ प्रकाशित
सम्पर्क सूत्र-
गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"
(कर अधिकारी)
जिला पंचायत परिसर
निकट-सन्तोषी माता मन्दिर
गोंडा रोड
बलरामपुर (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड-271201
मोबाइल नम्बर-8439026183, 7983636782

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

सन्तोष कुमार सिंह की बाल कविता : चकला, बेलन, आटा दें

मम्मी  मैंने   खेला   खेल ।
अब लूँ अपनी रोटी बेल ।।

मुझको   नहीं  पराठा   दें ।
चकला,  बेलन,  आटा दें ।।

और न चकला हो घर पर ।
मैं    बेलूँगी    टेबल   पर ।।

खाऊँगी   बस  दो  रोटी ।
वो  भी  हों  छोटी-छोटी ।।

मम्मी  देख  बनाली  एक ।
इस रोटी को  पहले सेक ।।

मम्मी मन में खुश  हो ली ।
हँसकर  मुझसे यों बोली ।।

दो   ही  अगर   बनाएगी ।
दीदी  फिर क्या खाएगी ?

वह  करती है  तुझे दुलार ।
बना रोटियाँ  पूरी  चार ।
सन्तोष कुमार सिंह
 जन्म - 8 जून 1951
जन्मस्थान - गाँव ततारपुर, पोस्ट सलेमपुर, जिला हाथरस (उ.प्र.)
शिक्षा -  एम.ए. (राजनीति विज्ञान)
डिप्लोमा (इलैक्टीकल)
    स्वतंत्र साहित्य सृजन में रत ।
प्रकाशन :
प्रौढ़ साहित्य की 21पुस्तकें ।
बाल साहित्य की 27 पुस्तकें ।
पुरस्कार एवं सम्मान -
1. पं० रामनारायण शास्त्री अखिल भारतीय कहानी पुरस्कार, इंदौर से ।
2. गीत संग्रह *अनुरंजिका* पर ओंकार लाल शास्त्री, स्मृति पुरस्कार, सलूम्बर (राज०) से ।
3. *मनभावन बाल कहानियाँ* पुस्तक पर पं० हरिप्रसाद पाठक स्मृति पुरस्कार, मथुरा से ।
4. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ से बाल कहानी संग्रह पर  *झिलमिल मछली गिल्लू कछुआ* पर  40,000/-  रुपये का सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य सृजन सम्मान ।
5. सूर्यनारायण सूर्यवंशी स्मृति पुरस्कार , भोपाल से ।
6. श्री हरिदास बजाज, *हास्य पुरस्कार* ब्रज कला केन्द्र मथुरा से ।
7. *सृजन सम्मान* विश्वम्भर दास स्मृति समिति, मथुरा से ।
8. *कविश्री सम्मान* अखिल भारतीय कवि सभा दिल्ली से ।
9. *चन्द्र बरदाई सम्मान* क्षत्रिय सेवा समिति, गाजियाबाद (उ.प्र.) से ।
10. *साहित्य सुधाकर मानद उपाधि* साहित्य सेवा मंडल, श्रीनाथद्वारा (राज०) से ।
11. *बाल साहित्य सम्मान* राज कुमार फाउण्डेशन, आकोला,चित्तौड़गढ़ से ।
12. *सारस्वत सम्मान* बिसौली जिला बदायूँ (उ.प्र.) से ।
13. *साहित्य सुधाकर मानद उपाधि* सजल सर्जना समिति, मथुरा से ।
14. *साहित्य गौरव सम्मान* अखिल भारतीय कवि सभा, दिल्ली से ।
15. *कला, साहित्य सेवा सम्मान* संस्कार भारती, मथुरा महानगर से ।
16. *साहित्य शिरोमणि सम्मान* साहित्यिक संस्था कलांजलि, मथुरा से ।
17.गजल संग्रह *परत दर परत सच* के लिए शब्द प्रवाह साहित्यिक संस्था, उज्जैन से ।
18. *एक कुत्ते की अत्मकथा* कहानी पर साहित्य समर्था, जयपुर से पुरस्कार ।
10. इंडियन ऑयल मुख्यालय, दिल्ली से निबंध पर प्रथम पुरस्कार ।
11. साहित्य गौरव सम्मान-2019 - संदर्भ समीक्षा समिति, भीलवाड़ा से ।
12. सलिला बाल साहित्य संस्था, सलूम्बर से श्रेष्ठ यात्रा वृतांत पुरस्कार 
13. उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ से रु. 51000/- का जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान सृजन सम्मान-2019
स्थायी पता -'चित्रनिकेतन', बी45, मोतीकुंज एक्सटेंशन, मथुरा 
मोबाइल नं० - 9456882131

शनिवार, 28 दिसंबर 2019

इंदिरा गौड़ के बाल गीत


सूरज दादा 
 इंदिरा गौड़ 

तुम बिन चले न जग का काम,
सूरज दादा राम राम!

लादे हुए धूप की गठरी
चलें रात भर पटरी-पटरी,
माँ खाने को रखती होगी
शक्कर पारे, लड्डू, मठरी।
तुम मंजिल पर ही दम लेते,
करते नहीं तनिक आराम!

कभी नहीं करते हो देरी
दिन भर रोज लगाते फेरी
मुफ्त बाँटते धूप सभी को-
कभी न करते तेरा मेरी।
काँधे गठरी धर चल देते-
साँझ हाथ जब लेती थाम।

चाहे गर्मी हो या जाड़ा
तुम्हें ज़माना रोज अखाड़ा,
बोर कभी तो होते होगे
रटते-रटते वही पहाड़ा।
सब कुछ गड़बड़ कर देते हैं,
बादल करके चक्का जाम!
 घुमक्कड़ चिड़िया 
इंदिरा गौड़
अरी! घुमक्कड़ चिड़िया सुन
उड़ती फिरे कहाँ दिन-भर,
कुछ तो आखिर पता चले
कब जाती है अपने घर।

रोज-रोज घर में आती
पर अनबूझ पहेली-सी
फिर भी जाने क्यों लगती
अपनी सगी सहेली-सी।
कितना अच्छा लगता जब-
मुझे ताकती टुकर-टुकर!

आँखें, गरदन मटकाती
साथ लिए चिड़ियों का दल
चौके में घुस धीरे-से
लेकर गई दाल-चावल।
मुझको देख उड़न-छू क्यों,
क्या लगता है मुझसे डर!

कितना अच्छा होता जो
मैं भी चिड़िया बन जाती,
जाकर पार बादलों के
चाँद-सितारे छू आती।
अपना फ्रॉक तुझे दूँगी,
तू मुझको दे अपने पर।
जन्म : १९ दिसंबर १९४३, मथुरा 
निधन : २७  दिसंबर,२०१९, सहारनपुर