कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए
धरती अंबर चन्दा सूरज
खेलें आँख मिचौली
धूप चाँदनी वर्षा बादल
जमकर करें ठिठोली
चन्दा आए धरती पर फिर..
यहीं कहीं खो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए
चन्दा की बुढ़िया से भी तो
करनी हैं कुछ बातें
ठिठुर-ठिठुर कर ठंडक में
कैसे कटती हैं रातें
हम काते उसका चरखा
बुढ़िया रानी सो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए.
ठंडा ठंडा होता चन्दा
उसको हम गर्मी दें
गर्मी में जब बहे पसीना
हम उससे ठंडक लें
फिर काहे की सर्दी गर्मी
ये आए वो जाए.
कुछ ऐसा हो जाए ओ जी
कुछ ऐसा हो जाए
मुबीना खान,
प्रवक्ता बी. एड. विभाग,
लखीमपुर खीरी यू.पी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-11-2012) के चर्चा मंच-1060 (मुहब्बत का सूरज) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
a beautiful poem, congrats for the poem keep writing
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता के लिए बधाई
जवाब देंहटाएंbahut hi pyari kavita hai. lekhika ko bahut badhayi.
जवाब देंहटाएंlekhika ne bahut hi sundar kalpna ki hai. bachchon ki aisi hi poem honi chahiye.
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