पेटूमल
लड्डू-पेड़ा रसगुल्ला .
मचा रहे हल्ला-गुल्ला .
पेटूमल की पड़ी नजर .
गए सभी मुंह के अंदर .
*
अगड़म-बगड़म
अगड़म-बगड़म-बम,
खेलें कूदें हम .
अगड़म-बगड़म ठा ,
बछड़ा बोला-बां.
अगड़म-बगड़म कुर्र,
चिड़िया उड़ गयी फुर्र.
*
घडी
दस बजकर दस मिनट हुआ जब , बैठी मूंछे ऐठ .
आठ बीस हैं , घडी झुकाकर , मूंछ गयी है बैठ.
होली
होली
मौके आते ऐसे,
सोच रहा खरगोश
ऊँट के गले मिले कैसे ?
चित्र: गूगल सर्च
जन्म :10 अक्तूबर , 1954 , बलिया
शिक्षा : एम्-एस. सी.
बाल कविता की रचना में अद्भुत प्रयोगों के लिए चर्चित .
कई पुस्तकें प्रकाशित .
संपर्क : 538 k/514, त्रिवेणी नगर द्वितीय , लखनऊ
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