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बुधवार, 18 मई 2011

दो कविताएं : लगी पूंछ में आग और लौकी




दो कविताएं  : डा. आर. पी. सारस्वत 
लगी पूछ में आग

नकली पूंछ लगाकर गोलू 
बने वीर  हनुमान 
जा रावण -दरबार वहां पर 
किया राम गुणगान . 
गदा घुमा कर गोलू भैया 
ठोक रहे थे ताल .
डर के मारे लंका वालों
 का था पतला हाल . 
रावण के कहने पर ज्यों ही
 लगी पूंछ में आग . 
नकली पूंछ फेंक कर गोलू 
गए वहां से भाग . 
चौपट हुयी रामलीला तब 
बच्चे हँसे ठठाकर . 
गोलू था डरपोक , हुई 
गलती हनुमान बनाकर . 


लौकी

बाबा फिर ले आए लौकी,
 सब्जी मंडी अटी पड़ी थी,
 गोभी, घुइयाँ सटी पड़ी थीं।
 कदू शिमला मिर्च, करेला, 
गाजर, मूली कच्चा केला, 
पर बाबा जी ने फिर-फिर के
 नजर हाय लौकी पर रोकी।

इसको लेकर घर जाएँगे, 
अब लौकी के गुण गाएँगे। 
दवा नहीं हो जिसको खानी, 
उसको यही पड़ेगी खानी। 
काट-पीट कर झट अम्मा ने 
गुस्से में आ लौकी छौंकी।
डा. आर. पी. सारस्वत 
जन्म : 1 अप्रैल , 1954 ,मथुरा 
प्रकाशित बाल कविता संग्रह :
 नानी का गाँव , चटोरी चिड़िया 
संपर्क : पन्त विहार , सहारनपुर 
मो.-9897792500


चित्र गूगल सर्च से साभार 

3 टिप्‍पणियां:

  1. हा हा हा बहुत सुन्दर डरपोक गोलू की बाल कविता

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  2. बढ़िया, सचमुच बढ़िया और नाटकीय। कविता पढ़कर बच्चों के साथ मिलकर हा-हा-हा करके हँसने का मन हो आया। सस्नेह, प्र.म.

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