नकली पूंछ लगाकर गोलू बने वीर हनुमान जा रावण -दरबार वहां पर किया राम गुणगान . गदा घुमा कर गोलू भैया ठोक रहे थे ताल . डर के मारे लंका वालों का था पतला हाल . रावण के कहने पर ज्यों ही लगी पूंछ में आग . नकली पूंछ फेंक कर गोलू गए वहां से भाग . चौपट हुयी रामलीला तब बच्चे हँसे ठठाकर . गोलू था डरपोक , हुई गलती हनुमान बनाकर . लौकी बाबा फिर ले आए लौकी, सब्जी मंडी अटी पड़ी थी, गोभी, घुइयाँ सटी पड़ी थीं। कदू शिमला मिर्च, करेला, गाजर, मूली कच्चा केला, पर बाबा जी ने फिर-फिर के नजर हाय लौकी पर रोकी। इसको लेकर घर जाएँगे, अब लौकी के गुण गाएँगे। दवा नहीं हो जिसको खानी, उसको यही पड़ेगी खानी। काट-पीट कर झट अम्मा ने गुस्से में आ लौकी छौंकी। जन्म : 1 अप्रैल , 1954 ,मथुरा प्रकाशित बाल कविता संग्रह : नानी का गाँव , चटोरी चिड़िया संपर्क : पन्त विहार , सहारनपुर मो.-9897792500 |
चित्र गूगल सर्च से साभार
हा हा हा बहुत सुन्दर डरपोक गोलू की बाल कविता
जवाब देंहटाएंबढ़िया, सचमुच बढ़िया और नाटकीय। कविता पढ़कर बच्चों के साथ मिलकर हा-हा-हा करके हँसने का मन हो आया। सस्नेह, प्र.म.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया..
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