बाल कविता : रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'
गोलू है बेहद नटखट,
बातें करता वह अटपट .
खाने में शौकीन बड़ा,
जमकर खाता दही-बड़ा .
गया अकेले वह बाजार ,
खाया पूड़ी संग अचार .
टिक्की और पकौड़ा खाया ,
चाउमीन पर भी ललचाया .
डोसा इडली कड़ू मटर ,
भरा पेट में अटर-पटर .
फूला पेट फुलक्के-सा ,
गुड़-गुड़ करता हुक्के-सा .
डाक्टर आया सुई लगायी ,
बेमन ढेर दवायें खायीं .
तब जाकर बच पायी जान,
गोलू ने फिर पकड़े कान.
अब न खाउँगा चाट मटर,
सादा खाना बस घर पर .
रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'
जन्म : ३१ मई , १९५८
शिक्षा : स्नातक
बाल साहित्य लेखन एवं संपादन में सक्रिय
सम्प्रति : सह-संपादक ,' राष्ट्र धर्म '
संस्कृति भवन , राजेंद्र नगर , लखनऊ
चित्र साभार : गूगल सर्च
ही-ही-ही...बहुत ही मज़ेदार कविता....
जवाब देंहटाएंBahut sundar kavita..badhai.
जवाब देंहटाएंनटखट बाल मन सा कोमल..बहुत सुंदर कविता....लाजवाब।
जवाब देंहटाएंत्रिपाठी जी की कविता पढ़ी. मनोरंजक कविता है. बच्चे इस प्रकार की कविताएं विशेष पसंद करते हैं.
जवाब देंहटाएंबच्चों को हंसाने वाली ,उन्हें पुलकित करने वाली बहुत अच्छी बालकविता जिसमें शिक्षा भी निहित है ।
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