सूरज मामा से हम कहते,
क्यों इतने गुस्से में रहते?
हरदम रहते पीले, लाल,
लगते हो सोने का थाल।
क्यों हैं इतने तीखे तेवर?
आग बरसती है धरती पर।
दूर - दूर तुमसे जाते हैं
हम गर्मी से घबराते हैं।
मामी से क्या हुई लड़ाई ?
इसीलिए गर्मी फैलाई ।
अपना गुस्सा छोड़ो न,
ठण्डा पानी पी लो न !
(मौलिक और स्वरचित कविता)
राजकुमार जैन राजन
जन्म : 24 जून 1969, आकोला, राजस्थान
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)
प्रकाशन- ’नेक हंस’, ‘लाख टके की बात’, ‘झनकू का गाना’, ‘आदर्श मित्र’,‘बच्चों की सरकार’, ‘आदिवासी बालक’,‘पशु पक्षियो के गीत’, ‘एक् था गुणीराम’, ‘सबसे अच्छा उपहार’, ‘प्यारी छुट्टी जिन्दाबाद’, ’बस्ते का बोझ’, ’चिड़िया की सीख’, ‘जन्म दिन का उपहार’, ‘मन के जीते जीत’, पेड़ लगाएं’
लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : आकाशवाणी व दूरदर्शन
संपादन- कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन/बाल साहित्य विशेषांकों का संपादन
पुरस्कार व सम्मान : सौ से अधिक सम्मान
विशेष : बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन
संपर्क : चित्रा प्रकाशन,
आकोला- 312205,
चित्तौडगढ़ (राजस्थान)
मोबाइल- 09828219919
भाई "बालमंदिर" में मेरी बाल कविता को स्थान देने के लिए हृदय से आभार। आपका यह प्रयास नवोदित व स्थापित रचनाकारों की रचनाओं का इंद्रधनुषी गुलदस्ता है, जिसमे बाल काव्य के विविध रंग बिखर रहे हैं। मैंने लगभग अधिकांश रचनाकारों की रचनाओं का " वाल मंदिर" में पढ़ है। आपके इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभ कामना।
जवाब देंहटाएं*राजकुमार जैन राजन, आकोला
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जवाब देंहटाएंवाह! बालसुलभ सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना है! बच्चे पसन्द करेंगे!
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