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शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

राकेश चक्र की बाल कविता - मीठी नींद


जाल-सी बुनी हुुई है
मेरी मच्छरदानी ।
दूर-दूर से मच्छर करते
इसको रोज सलामी ।
इसके कारण लेता मैं तो
मीठी नींद मजे से 
मच्छर खून न चूसें मेरा
रहते डरे-डरे से ।

जो न लगाकर इसको सोता
ज्वर-जूड़ी चढ़ जाता
मोटी फीस डाॅक्टर लेता
गांठ का रुपया जाता ।
साफ-सफाई मित्र रहे तो
मच्छर पास न आते
नीम और तुलसी के पौधे
मच्छर दूर भगाते ।


राकेश ‘चक्र’
90, शिवपुरी, मुरादाबाद
मोबाइल: 09456201857
चित्र साभार गूगल 

3 टिप्‍पणियां:

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