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रविवार, 26 दिसंबर 2010

गोरखधंधा-सुधीर पांडेय

बाल कविता 
डा. सुधीर पांडेय 
कितने तारे आसमान में , 
एक अकेला  चंदा . 
मुन्ना बैठा सोच रहा ये 
कैसा गोरखधंधा ? 
एक चाँद से हो जाती है 
सारी रात उजाली . 
सब तारे मिल भगा न पाते 
रात अमावस काली . 
सूरज दादा दिन भर तपते 
शाम कहाँ को जाते ?
काले - भूरे बादल उड़-उड़ 
जाने कहाँ से आते .
बिजली क्यूँ चमका करती है , 
बादल क्यूँ गुर्राते . 
जब भी बादल बरसा करते 
मेढक क्यूँ टर्राते ? 
पानी धरती को छूते ही 
हो जाता क्यूँ गंदा . 
मुन्ना बैठा सोच रहा ये 
कैसा गोरखधंधा ? 
सुधीर पांडेय 
अध्यक्ष ,अभिज्ञान साहित्यिक संस्था  . 
बड़ा गांव, शाहजहांपुर ( उ. प्र. )

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