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सोमवार, 24 जनवरी 2011

पूरी फ़ौज किचन के अंदर


सलोनी रूपम् की कविता

एक बच्चा, 
किसका बच्चा ?
सोचो ... ... .

मंकी का बच्चा.
बच्चे ने अपुन को देखा. 
अपुन ने बच्चे को देखा.

तभी कूदते-उछलते हुए 
उसके डैडी आ गए,
पीछे से उसकी मम्मी
 पूरी फ़ौज लेकर 
कूद पड़ीं. 

कोई इधर गया, 
कोई उधर गया,
कोई ऊपर गया, 
कोई नीचे  गया.

फिर ... ... .
धीरे - धीरे पूरी फ़ौज 
किचन के अंदर.  

कच्चा खाया,
पक्का खाया, 
कप भी तोडा, 
प्याली भी तोड़ी.

मैं विंडो के अंदर से 
झाँक रही थी. 
तभी ... ... . 

मुझे कुछ याद आया, 
मैंने अपनी गन उठाई. 
छः राउंड निकले -
ठायँ-ठायँ-ठायँ-ठायँ-ठायँ-ठायँ.

फिर ... ... .
पूरी फ़ौज नौ दो ग्यारह. 
मुझे इस बहादुरी का 
पुरस्कार मिलना चाहिए. 

नौ वर्षीया सलोनी रूपम 
केंद्रीय विद्यालय, शाहजहाँपुर में  कक्षा ४ में पढ़ती है.

नृत्य और गायन के लिए उसे कई पुरस्कार मिले हैं. 


6 टिप्‍पणियां:

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