बालगीत : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना इब्न बतूता , पहन के जूता निकल पड़े तूफान में . थोड़ी हवा नाक में घुस गई , थोड़ी घुस गई कान में . कभी नाक को , कभी कान को मलते इब्न बतूता . इसी बीच में निकल पड़ा उनके पैरों का जूता . उड़ते-उड़ते जूता उनका जा पहुँचा जापान में . इब्न बतूता खड़े रह गए मोची की दूकान में . |
बाल-मंदिर परिवार
हमारे सम्मान्य समर्थक
शनिवार, 14 मई 2011
इब्न बतूता - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत सुन्दर बाल गीत है …….. धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंमजेदार गीत ....
जवाब देंहटाएंप्रिय नागेश, सर्वेश्वर जी की यह ऐतिहासिक महत्व की कविता प्रस्तुत करने के लिए बधाई। यह हिंदी बाल कविता की कुछ बड़े मयार की श्रेष्ठ और महान रचनाओं में से है जिन्होंने हिंदी बाल कविता की धारा ही बदल दी। सस्नेह, प्र.म.
जवाब देंहटाएं