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बुधवार, 2 मार्च 2011

कैसे होते हैं दिन- रात ?

बाल कविता : अजय गुप्त 


आओ बच्चों तुम्हें बताएं , 
कैसे होते हैं दिन- रात ?

देखो , सुनो हमारी बात ;
मुह पर मले गुलाल सरीखा ,
या कि टमाटर लाल सरीखा .
मुस्काती हरियाली वाला 
सोने सी उजियाली वाला 
कीलों पर नाचती गेंद-सा 
जो हिस्सा अपनी धरती का ,
सूरज के सम्मुख होता हैं , 
उसमें होता दिन या प्रात
कैसे होते हैं दिन रात ?

अक्सर श्वेत मलाई-सा , 
काला , काली माई-सा . 
हँसते चंदा-तारों का ,
शरमाए उजियारों का .
कीली  पर नाचती गेंद-सा , 
जो हिस्सा अपनी धरती का , 
सूरज के पीछे होता है .
वही कहा जाता है रात .

बोलो बच्चों समझ गए न ,
कैसे होते हैं दिन- रात ? 
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अजय गुप्त 

जन्म : 6 सितम्बर, 1951 , शाहजहांपुर 
प्रकाशित बालकविता संग्रह :
 कैसे होते हैं दिन- रात ?,जंगल में मोबाइल
प्रवर्तक/संयोजक : प्रभा स्मृति बाल साहित्य पुरस्कार 
संपर्क : सचिव , गाँधी पुस्तकालय ,चौक , शाहजहांपुर (उ.प्र.) 
Mob. 096210 88824

2 टिप्‍पणियां:

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