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रविवार, 4 सितंबर 2011

मकड़ी क्यों जाले बुनती :चक्रधर नलिन

बाल कविता : चक्रधर  नलिन 
मेरे सोने के कमरे में ,
मकड़ी क्यों जाले बुनती हो ?
मेरी माँ कमरे में आकर ,
 देंगी तेरे जाले तोड़ .
बड़ी ख़ुशी से बना रही घर,
अपने मुंह से धागे जोड़ .
अपनी धुन के आगे तुम क्यों 
मेरी बात नहीं सुनती हो !
क्या तुम देख रही हो मेरे 
होठों की प्यारी मुस्काने ?
तुम्हें पता क्या हम सब अपनी 
धुन के हैं कितने दीवाने ?
अपने जाले मिट जाने पर 
क्यों तुम अपना सिर धुनती हो ?


चक्रधर  नलिन 
जन्म :19 जुलाई ,1939 ,अतौरा , रायबरेली 
शिक्षा : एम. ए. (अंग्रेजी ),एल-एल.बी. 
छः दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित.
संपर्क :254, चंद्रलोक ,अलीगंज, लखनऊ 

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