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शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

फूला पेट फुलक्के सा - रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'

बाल कविता : रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'
गोलू है बेहद नटखट,
बातें करता वह अटपट .
खाने में शौकीन बड़ा,
जमकर खाता दही-बड़ा .
गया अकेले वह बाजार ,
खाया पूड़ी संग अचार .
टिक्की और पकौड़ा खाया ,
चाउमीन पर भी ललचाया .
डोसा इडली कड़ू मटर ,
भरा पेट में अटर-पटर .
फूला पेट फुलक्के-सा ,
गुड़-गुड़ करता हुक्के-सा .
डाक्टर आया सुई लगायी ,
बेमन ढेर दवायें खायीं .
तब जाकर बच पायी जान,
गोलू ने फिर पकड़े कान.
अब न खाउँगा चाट मटर,
सादा खाना बस घर पर .

रामनारायण त्रिपाठी 'पर्यटक'
जन्म : ३१ मई , १९५८ 
शिक्षा  : स्नातक 
बाल साहित्य लेखन एवं संपादन में सक्रिय 

सम्प्रति :  सह-संपादक ,' राष्ट्र धर्म '
संस्कृति भवन , राजेंद्र नगर , लखनऊ 
चित्र  साभार  : गूगल सर्च 

5 टिप्‍पणियां:

  1. ही-ही-ही...बहुत ही मज़ेदार कविता....

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  2. नटखट बाल मन सा कोमल..बहुत सुंदर कविता....लाजवाब।

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  3. त्रिपाठी जी की कविता पढ़ी. मनोरंजक कविता है. बच्चे इस प्रकार की कविताएं विशेष पसंद करते हैं.

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  4. बच्चों को हंसाने वाली ,उन्हें पुलकित करने वाली बहुत अच्छी बालकविता जिसमें शिक्षा भी निहित है ।

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