लोरी : डा. अजय जनमेजय
चलो लाल अब तुम्हें सुलाऊँ,
प्यारी लोरी गाऊँ.
खेल -कूद में बीत गया दिन,
किसको पता चला ?
हँसते-गाते शोर मचाते,
आया खूब मजा.
आ जा मेरे नटखट नंदन,
झुला तुझे झुलाऊँ.
किसी मेमने के पीछे क्या,
भागे उसे पकड़ने ?
छोटी-छोटी बातों पर क्यों
तुम सब लगे झगड़ने ?
दिन के गिले , खेल के सारे,
हँस-हँस कर सुलझाऊँ.
अच्छा बालगीत।
जवाब देंहटाएंअतुल जी धन्यवाद
हटाएंबहुत प्यारी कविता ....
जवाब देंहटाएंचैतन्य जी आभार
हटाएंbahut sundar..Congrats.......
जवाब देंहटाएंभाई दीनदयाल जी धन्यवाद्
हटाएंबहुत सुन्दर लोरी
जवाब देंहटाएंलोरियों का महत्व अलग ही है
वंदना जी धन्यवाद
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