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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

डा. अजय जनमेजय की लोरी


 लोरी : डा. अजय जनमेजय 


चलो लाल अब तुम्हें सुलाऊँ,
  प्यारी लोरी  गाऊँ.   

खेल -कूद में बीत गया दिन,
किसको पता चला ?
हँसते-गाते शोर मचाते,
आया खूब मजा.
आ जा मेरे नटखट नंदन, 
झुला तुझे झुलाऊँ.

किसी मेमने के पीछे क्या,
भागे उसे पकड़ने ?
छोटी-छोटी बातों पर क्यों 
तुम सब लगे झगड़ने ?
दिन के गिले , खेल के सारे,
हँस-हँस कर सुलझाऊँ.  

 डा. अजय जनमेजय
जन्म : २८ नवम्बर, १९५५
बाल साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक
बच्चों के लिए कविता-कहानी की पुस्तकें प्रकाशित. 
कई सम्मान प्राप्त
संपर्क : ४१७, राम बाग, बिजनौर(उ.प्र.)
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चित्र में : कुबेर अंकुर अपनी दादी के साथ 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर लोरी
    लोरियों का महत्व अलग ही है

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