बाल-मंदिर परिवार

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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

डा. अजय जनमेजय की लोरी


 लोरी : डा. अजय जनमेजय 


चलो लाल अब तुम्हें सुलाऊँ,
  प्यारी लोरी  गाऊँ.   

खेल -कूद में बीत गया दिन,
किसको पता चला ?
हँसते-गाते शोर मचाते,
आया खूब मजा.
आ जा मेरे नटखट नंदन, 
झुला तुझे झुलाऊँ.

किसी मेमने के पीछे क्या,
भागे उसे पकड़ने ?
छोटी-छोटी बातों पर क्यों 
तुम सब लगे झगड़ने ?
दिन के गिले , खेल के सारे,
हँस-हँस कर सुलझाऊँ.  

 डा. अजय जनमेजय
जन्म : २८ नवम्बर, १९५५
बाल साहित्य के सुप्रसिद्ध लेखक
बच्चों के लिए कविता-कहानी की पुस्तकें प्रकाशित. 
कई सम्मान प्राप्त
संपर्क : ४१७, राम बाग, बिजनौर(उ.प्र.)
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चित्र में : कुबेर अंकुर अपनी दादी के साथ 

सोमवार, 5 दिसंबर 2011

डा. बलजीत सिंह की बाल कविता : कुत्ते हैं तैनात

बाल कविता : डा. बलजीत सिंह 
चूहे देने गए परीक्षा,
बिल्ली बनी निरीक्षक.
चूहे थर-थर काँप रहे थे,
देख सामने भक्षक.
चूहों का दल मुख्य परीक्षक
से मिलने को आया.
डरते-डरते उनको अपना 
सारा दर्द सुनाया.
वे बोले- तुम डरो न बिल्कुल,
है पूरी तैयारी.
कुत्ते हैं तैनात, कहो क्या 
कर लेगी बेचारी ?



डा. बलजीतसिंह
      जन्म : 10 जून 1935, ग्राम चाँदनेर (ग़ाजियाबाद)
      शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी. (अँग्रेज़ी)
     कार्यक्षेत्र : पूर्व अध्यक्ष अँग्रेज़ी विभाग, वर्धमान कालेज, बिजनौर (उ.प्र.)
बाल कविता संग्रह ;  हम बगिया के फूल, गाओ गीत सुनाओ गीत, छुट्टी के दिन  बड़े सुहाने,दिन बचपन के (बालगीत-संग्रह)
      पता :शांतिकुंज, 483,  नई बस्ती, बी-14, बिजनौर- 246701
दूरभाष :01342-262419, 9897714214

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

साधू बाबा !


बाल कविता : नागेश पांडेय 'संजय' 
साधू बाबा ! साधू बाबा ! 
मैं हूँ साधू बाबा. 
बजा खंजड़ी ,  भजन -कीर्तन 
करता  हूँ ,सुख  पाता
प्रभु  का करता ध्यान, ख़ुशी  से 
पुलक - पुलक  हूँ  जाता 
छोटी  -सी  झोपडी  हमारी ,
जिसमे  मैं  हूँ   रहता. 
सुख -दुख  सारे, हँस कर हाँ रे !
बस उसमे ही सहता. 
वही हमारी काशी भैया, 
वही हमारा काबा.
पाल रखी है मधुर दूध
 के लिए लाल एक गैया.
दौड़ी - दौड़ी आ जाती है 
जब कहता हूँ 'मैया'.
साग-सब्जियाँ उगती रहतीं,
बना रखी है क्यारी.
भीख माँगता कभी न, अपनी 
यह आदत है न्यारी.
झीनी-झीनी चादर अपना 
पुश्तैनी पहनावा.
साधू होता त्यागी, उसको 
मोह जकड़ न पाता.
साधू होता फक्कड़, उसका 
कहाँ किसी से नाता.
कुछ बहुरूपी बन साधू 
उल्लू सीधा करते हैं.
तंत्र जप के ढोंग दिखाते,
 खूब ठगी करते हैं.
इनसे बचकर रहना भैया! 
करना नहीं भुलावा.
साधू बाबा  साधू बाबा 
मैं  हूँ  साधू बाबा