बाल कविता : नागेश पांडेय 'संजय'
साधू बाबा ! साधू बाबा !
मैं हूँ साधू बाबा.
बजा खंजड़ी , भजन -कीर्तन
करता हूँ ,सुख पाता
प्रभु का करता ध्यान, ख़ुशी से
पुलक - पुलक हूँ जाता
छोटी -सी झोपडी हमारी ,
जिसमे मैं हूँ रहता.
सुख -दुख सारे, हँस कर हाँ रे !
बस उसमे ही सहता.
वही हमारी काशी भैया,
वही हमारा काबा.
पाल रखी है मधुर दूध
के लिए लाल एक गैया.
दौड़ी - दौड़ी आ जाती है
जब कहता हूँ 'मैया'.
साग-सब्जियाँ उगती रहतीं,
बना रखी है क्यारी.
भीख माँगता कभी न, अपनी
यह आदत है न्यारी.
झीनी-झीनी चादर अपना
पुश्तैनी पहनावा.
साधू होता त्यागी, उसको
मोह जकड़ न पाता.
साधू होता फक्कड़, उसका
कहाँ किसी से नाता.
कुछ बहुरूपी बन साधू
उल्लू सीधा करते हैं.
तंत्र जप के ढोंग दिखाते,
खूब ठगी करते हैं.
इनसे बचकर रहना भैया!
करना नहीं भुलावा.
साधू बाबा साधू बाबा
मैं हूँ साधू बाबा