बाल-मंदिर
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मंगलवार, 28 अप्रैल 2020
दिव्यांशी की पहली कविता 'आने वाले हैं सर !'
शनिवार, 25 अप्रैल 2020
राघव शुक्ल की बाल कविता : अनोखी दावत
चित्र साभार : गूगल
अनोखी दावत
चंपक चाचा दावत पहुंचे
भूख लगी थी भारी
और पेट में कूद रहे थे
चूहे बारी बारी
सबसे पहले जी भर खाये
छोले और भटूरे
फिर चटनी सँग बीस बताशे
गिनकर खाये पूरे
फिर टिक्की खस्ते पर आए
खाया इडली डोसा
मटर पकौड़ी तवा पराठा
छोड़ा नहीं समोसा
मखनी दाल वेज बिरियानी
खाई हलुआ पूरी
फिर पनीर के साथ छक गए
दस रोटी तंदूरी
रबड़ी और इमरती खायी
फिर रसगुल्ला खाया
और बनाना शेक पिया फिर
मीठा पान चबाया
चलते चलते मेजबान को
सौ का दिया लिफाफा
एक हजार का भोजन खाया
नौ सौ हुआ मुनाफा
राघव शुक्ल
पिता-श्री राम अवतार शुक्ल
माता-श्रीमती मालती शुक्ला
जन्मतिथि- 25.06.1988
जन्मस्थान- मोहम्मदी लखीमपुर खीरी उ प्र
शिक्षा -विज्ञान स्नातक, शिक्षा स्नातक, परास्नातक(गणित इतिहास,अंग्रेजी,हिन्दी)
सम्प्रति-अध्यापक बेसिक शिक्षा
लेखन विधाएं-गीत,गीतिका,दोहा
प्रकाशन-साहित्य मंजरी, गीत गागर, हस्ताक्षर, बालवाटिका, कविताकोश संग्रह ,साहित्यगंधा, राष्ट्र राज्य,अमर उजाला काव्य व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशन
बाल कविता,बाल गीत लिखने में विशेष अभिरुचि।
पता-राघव शुक्ल
रामलीला मैदान, पोस्ट मोहम्मदी
जिला लखीमपुर खीरी
पिन 262804
मेल-raghavshukla.rtr@gmail.com
मोबाइल 9956738558
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020
डॉ. मधु भारती की बाल कविता 'चिड़िया फुर्र उड़ी'
सोमवार, 6 अप्रैल 2020
गौरव वाजपेयी 'स्वप्निल' की बाल कविता 'चलो चलें! नानी के घर'
हवा चल रही सर सर सर
चलो चलें! नानी के घर।
गर्मी की आई छुट्टी
है ना ! कितना शुभ अवसर।
बड़की मौसी जी के सँग
गुड्डू भइया आएँगे।
काकू की बगिया जाकर
आम तोड़ हम खाएँगे।
वहाँ हमारे सब मामा,
फिर बोलो जी किसका डर!
चिंटू मामा बोले थे
कैरम-लूडो लाएँगे।
रोज शाम चिड़िया-बल्ला
खेलेंगे-खिलवाएँगे।
रोज रात हम खेलेंगे
अंत्याक्षरी बैठ छत पर!
थोड़े दिन को बस्ते की
कर दी है हमने छुट्टी।
आओ! कथा-कहानी की
पी जाएँ मिलकर घुट्टी।
नाना जी भी आए हैं
कई किताबें कल लेकर!
गौरव वाजपेयी 'स्वप्निल'
जन्मतिथि-15 अगस्त 1977
जन्मस्थान-शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा-एम बी ए (मार्केटिंग इकोनॉमिक्स) (लखनऊ विश्वविद्यालय)
प्रकाशन : जनसत्ता, दैनिक ट्रिब्यून, राजस्थान पत्रिका, पंजाब केसरी, दैनिक अमृत विचार, दैनिक हिंदी मिलाप, दैनिक विजय दर्पण टाइम्स, दिन प्रतिदिन, बाल प्रभात, बाल वाटिका, बाल किलकारी, अभिनव बालमन, बच्चों का देश, चिरैया, बाल भारती, स्नेह, टाबरटोली, बालप्रभा, उजाला, संगिनी, साहित्य समीर दस्तक, उपनिधि, ककसाड़, मुक्त विचारधारा, इन्दौर समाचार, प्रिय पाठक, दैनिक किरणदूत, घटती घटना आदि पत्र/पत्रिकाओं में बालकविताएँ/बालकहानियाँ प्रकाशित
सम्पर्क सूत्र-
गौरव वाजपेयी "स्वप्निल"
(कर अधिकारी)
जिला पंचायत परिसर
निकट-सन्तोषी माता मन्दिर
गोंडा रोड
बलरामपुर (उत्तर प्रदेश)
पिन कोड-271201
मोबाइल नम्बर-8439026183, 7983636782
ई मेल-swapnil.gaurav@gmail.com
लेबल:
गौरव वाजपेयी 'स्वप्निल',
बाल कविता
शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020
सन्तोष कुमार सिंह की बाल कविता : चकला, बेलन, आटा दें
अब लूँ अपनी रोटी बेल ।।
मुझको नहीं पराठा दें ।
चकला, बेलन, आटा दें ।।
और न चकला हो घर पर ।
मैं बेलूँगी टेबल पर ।।
खाऊँगी बस दो रोटी ।
वो भी हों छोटी-छोटी ।।
मम्मी देख बनाली एक ।
इस रोटी को पहले सेक ।।
मम्मी मन में खुश हो ली ।
हँसकर मुझसे यों बोली ।।
दो ही अगर बनाएगी ।
दीदी फिर क्या खाएगी ?
वह करती है तुझे दुलार ।
बना रोटियाँ पूरी चार ।
सन्तोष कुमार सिंह
जन्म - 8 जून 1951
जन्मस्थान - गाँव ततारपुर, पोस्ट सलेमपुर, जिला हाथरस (उ.प्र.)
शिक्षा - एम.ए. (राजनीति विज्ञान)
डिप्लोमा (इलैक्टीकल)
स्वतंत्र साहित्य सृजन में रत ।
प्रकाशन :
प्रौढ़ साहित्य की 21पुस्तकें ।
बाल साहित्य की 27 पुस्तकें ।
पुरस्कार एवं सम्मान -
1. पं० रामनारायण शास्त्री अखिल भारतीय कहानी पुरस्कार, इंदौर से ।
2. गीत संग्रह *अनुरंजिका* पर ओंकार लाल शास्त्री, स्मृति पुरस्कार, सलूम्बर (राज०) से ।
3. *मनभावन बाल कहानियाँ* पुस्तक पर पं० हरिप्रसाद पाठक स्मृति पुरस्कार, मथुरा से ।
4. उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ से बाल कहानी संग्रह पर *झिलमिल मछली गिल्लू कछुआ* पर 40,000/- रुपये का सोहनलाल द्विवेदी बाल साहित्य सृजन सम्मान ।
5. सूर्यनारायण सूर्यवंशी स्मृति पुरस्कार , भोपाल से ।
6. श्री हरिदास बजाज, *हास्य पुरस्कार* ब्रज कला केन्द्र मथुरा से ।
7. *सृजन सम्मान* विश्वम्भर दास स्मृति समिति, मथुरा से ।
8. *कविश्री सम्मान* अखिल भारतीय कवि सभा दिल्ली से ।
9. *चन्द्र बरदाई सम्मान* क्षत्रिय सेवा समिति, गाजियाबाद (उ.प्र.) से ।
10. *साहित्य सुधाकर मानद उपाधि* साहित्य सेवा मंडल, श्रीनाथद्वारा (राज०) से ।
11. *बाल साहित्य सम्मान* राज कुमार फाउण्डेशन, आकोला,चित्तौड़गढ़ से ।
12. *सारस्वत सम्मान* बिसौली जिला बदायूँ (उ.प्र.) से ।
13. *साहित्य सुधाकर मानद उपाधि* सजल सर्जना समिति, मथुरा से ।
14. *साहित्य गौरव सम्मान* अखिल भारतीय कवि सभा, दिल्ली से ।
15. *कला, साहित्य सेवा सम्मान* संस्कार भारती, मथुरा महानगर से ।
16. *साहित्य शिरोमणि सम्मान* साहित्यिक संस्था कलांजलि, मथुरा से ।
17.गजल संग्रह *परत दर परत सच* के लिए शब्द प्रवाह साहित्यिक संस्था, उज्जैन से ।
18. *एक कुत्ते की अत्मकथा* कहानी पर साहित्य समर्था, जयपुर से पुरस्कार ।
10. इंडियन ऑयल मुख्यालय, दिल्ली से निबंध पर प्रथम पुरस्कार ।
11. साहित्य गौरव सम्मान-2019 - संदर्भ समीक्षा समिति, भीलवाड़ा से ।
12. सलिला बाल साहित्य संस्था, सलूम्बर से श्रेष्ठ यात्रा वृतांत पुरस्कार
13. उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ से रु. 51000/- का जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान सृजन सम्मान-2019
स्थायी पता -'चित्रनिकेतन', बी45, मोतीकुंज एक्सटेंशन, मथुरा
मोबाइल नं० - 9456882131
शनिवार, 28 दिसंबर 2019
इंदिरा गौड़ के बाल गीत
सूरज दादा
इंदिरा गौड़
तुम बिन चले न जग का काम,
सूरज दादा राम राम!
लादे हुए धूप की गठरी
चलें रात भर पटरी-पटरी,
माँ खाने को रखती होगी
शक्कर पारे, लड्डू, मठरी।
तुम मंजिल पर ही दम लेते,
करते नहीं तनिक आराम!
कभी नहीं करते हो देरी
दिन भर रोज लगाते फेरी
मुफ्त बाँटते धूप सभी को-
कभी न करते तेरा मेरी।
काँधे गठरी धर चल देते-
साँझ हाथ जब लेती थाम।
चाहे गर्मी हो या जाड़ा
तुम्हें ज़माना रोज अखाड़ा,
बोर कभी तो होते होगे
रटते-रटते वही पहाड़ा।
सब कुछ गड़बड़ कर देते हैं,
बादल करके चक्का जाम!
घुमक्कड़ चिड़िया
इंदिरा गौड़
अरी! घुमक्कड़ चिड़िया सुन
उड़ती फिरे कहाँ दिन-भर,
कुछ तो आखिर पता चले
कब जाती है अपने घर।
रोज-रोज घर में आती
पर अनबूझ पहेली-सी
फिर भी जाने क्यों लगती
अपनी सगी सहेली-सी।
कितना अच्छा लगता जब-
मुझे ताकती टुकर-टुकर!
आँखें, गरदन मटकाती
साथ लिए चिड़ियों का दल
चौके में घुस धीरे-से
लेकर गई दाल-चावल।
मुझको देख उड़न-छू क्यों,
क्या लगता है मुझसे डर!
कितना अच्छा होता जो
मैं भी चिड़िया बन जाती,
जाकर पार बादलों के
चाँद-सितारे छू आती।
अपना फ्रॉक तुझे दूँगी,
जन्म : १९ दिसंबर १९४३, मथुरा
निधन : २७ दिसंबर,२०१९, सहारनपुर
शनिवार, 12 मई 2018
सूरज मामा/राजकुमार जैन 'राजन'
सूरज मामा से हम कहते,
क्यों इतने गुस्से में रहते?
हरदम रहते पीले, लाल,
लगते हो सोने का थाल।
क्यों हैं इतने तीखे तेवर?
आग बरसती है धरती पर।
दूर - दूर तुमसे जाते हैं
हम गर्मी से घबराते हैं।
मामी से क्या हुई लड़ाई ?
इसीलिए गर्मी फैलाई ।
अपना गुस्सा छोड़ो न,
ठण्डा पानी पी लो न !
(मौलिक और स्वरचित कविता)
राजकुमार जैन राजन
जन्म : 24 जून 1969, आकोला, राजस्थान
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी)
प्रकाशन- ’नेक हंस’, ‘लाख टके की बात’, ‘झनकू का गाना’, ‘आदर्श मित्र’,‘बच्चों की सरकार’, ‘आदिवासी बालक’,‘पशु पक्षियो के गीत’, ‘एक् था गुणीराम’, ‘सबसे अच्छा उपहार’, ‘प्यारी छुट्टी जिन्दाबाद’, ’बस्ते का बोझ’, ’चिड़िया की सीख’, ‘जन्म दिन का उपहार’, ‘मन के जीते जीत’, पेड़ लगाएं’
लगभग तीन दर्जन पुस्तकें एवं पत्र-पत्रिकाओं में हजारों रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : आकाशवाणी व दूरदर्शन
संपादन- कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन/बाल साहित्य विशेषांकों का संपादन
पुरस्कार व सम्मान : सौ से अधिक सम्मान
विशेष : बाल साहित्य उन्नयन व बाल कल्याण के लिए विशेष योजनाओं का क्रियान्वयन
संपर्क : चित्रा प्रकाशन,
आकोला- 312205,
चित्तौडगढ़ (राजस्थान)
मोबाइल- 09828219919
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