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शनिवार, 7 दिसंबर 2013

नन्हा मुन्ना


बाल कविता - प्रत्यूष गुलेरी
नन्हा मुन्ना छैल छबीला ड्रेस पहन कर नीला पीला एक हाथ में पकड़ कर फूल चला मैं पढ़ने आज स्कूल अपने घर् का राजदुलारा मां की आंखों का हूँ तारा संगी साथी मुझे बुलाएँ मिलकर हम बैलून फुलाएँ डोर बांध के खूब उड़ाएँ हो! हो!हा !हा!दौड़ लगाएँ बडे जोर से शोर मचाएँ भागेँ देखो दाएं बाएँ घँटी बजी प्रेयर करेंगे हम बच्चे न कभी लड़ेंगे जितना होगा खूब पढ़ेगे
खूब पढ़ेगे खूब बढ़ेगे.




बुधवार, 26 जून 2013

प्रभु दयाल श्रीवास्तव की बाल कविता चींटी की शादी

चींटी की शादी

बाल कविता : प्रभु दयाल श्रीवास्तव 

चींटा की मिस चींटी के संग,
जिस दिन हुई सगाई।
चींटीजी के आंगन में थी,
गूंज उठी शहनाई।

घोड़े पर बैठे चींटाजी, 
बनकर दूल्हे राजा।
आगे चलतीं लाल चींटियां,
बजा रहीं थीं बाजा।

दीमक की टोली थी संग में,
फूँक रहीं रमतूला।
खटमल भाई नाच रहे थे ,
मटका मटका कूल्हा।

दुरकुचियों का दल था मद में,
मस्ताता जाता था।
पैर थिरकते थे ढोलक पर,
अंग अंग गाता था।

घमरे, इल्ली और केंचुये,
थे कतार में पीछे।
मद में थे संगीत मधुर के,
चलते आंखें मींचे।

जैसे ही चीटी सजधज कर,
ले वरमाला आई।
दूल्हे चींटे ने दहेज में,
महंगी कार मंगाई।

यह सुनकर चीटी के दादा,
गुस्से में चिल्लाये।
" शरम न आई जो दहेज में ,
कार मांगने आये।

धन दहेज की मांग हुआ,
करती है इंसानों में।
हम जीवों को तो यह विष सी,
चुभती है कानों में।"

मिस चींटी बोली चींटा से,
"लोभी हो तुम धन के।
नहीं ब्याह सकती मैं तुमको,
कभी नहीं तन मन से।

सभी बराती बंधु बांधवों,
को वापिस ले जाओ।
इंसानों के किसी वंश में,
अपना ब्याह रचाओ।"

शुक्रवार, 29 मार्च 2013

हॅंसीघर कविता : परशुराम शुक्ल


हॅंसीघर
      कविता : परशुराम शुक्ल

बच्चों के विज्ञान भवन ने,
सभी जनों को खूब लुभाया।
उत्तल अवतल दर्पण रखकर,
हॅंसने वाला कक्ष बनाया।।

मम्मी-पापा,भैया-दीदी,
सभी देखने इसको आये।
खड़े हुए दर्पण के आगे,
और अनोखे पोज बनाये।।

दीदी पतली लम्बी हो गयी,
जैसे बिजली वाला पोल।
और बेचारे मोटे पापा,
बने बजाने वाला ढोल।।

भैया ने जब हवा भरी तो,
गेंद सरीखे फूले गाल।
और हमारी नाटी मम्मी,
बनी देखने में फुटवाल।।

हम सबने देखा दर्पण  में,
अपने-अपने तन का हाल।
हॅंसते-हॅंसते लोटपोट सब,
क्या दर्पण ने किया कमाल।।
     परशुराम शुक्ल
भोपाल