माँ ! मुझे लगती हो प्यारी.
इस जग में सबसे हो न्यारी .
लोरी गाकर मुझे सुलाती,
मेरे दिल को तुम हो भाती.
मेरे दिल को तुम हो भाती.
नित्य नए पकवान बनाती,
माँ ! मुझे लगती हो प्यारी.
जब मैं होती बहुत दुखी,
आप मेरा सहारा बनती.
और अपने प्यार से मुझको,
कितना खुश कर देती हो.
बहन भाई की डांट से बचाती,
माँ ! मुझे लगती हो प्यारी.
बिन आपके अधूरी हूँ मैं.
बिन आपके अकेली हूँ मैं.
बिन माँ के जैसे ,
कोरा कागज हूँ मैं.
आपके बिना कुछ भी नहीं हूँ मैं.
माँ आप हो सबसे प्यारी.
इस जग में हो सबसे न्यारी.
शताक्षी
कक्षा - 8
सुपुत्री : डा. सुमन शर्मा, डा. नेहा शर्मा
एस-2, 69, ग्रीन पार्क,
बरेली
चित्र गूगल सर्च से साभार
bahut sundar kavita hai...SHATAKSHI ko bahut bahut badhai..
जवाब देंहटाएंBahut Pyari Kavita
जवाब देंहटाएंसशक्त और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंशताक्षी को शुभाशीष!
बहुत अच्छे ...शताक्षी
जवाब देंहटाएंआज 27/08/2012 को आपकी यह पोस्ट (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत प्यारी रचना .... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी कविता...!!!
जवाब देंहटाएंbahut badiya prastuti...keep it up...shatakshi....great job
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