मम्मी जी ने बनाए हलुआ-पूड़ी आज , आ धमके घर अचानक , पंडित श्री गजराज . पंडित श्री गजराज ,सजाई भोजन थाली , तीन मिनट में तीन थालियाँ कर दीं खाली . मारी एक डकार ,भयंकर सुर था ऐसा , हार्न दे रहा हो मोटर का ठेला जैसा . मुन्ना मिमियाने लगा , पढने को न जाऊं , मैं तो हलुआ खाऊंगा बस , और नहीं कुछ खाऊं . और नहीं कुछ खाऊं ,रो मत प्यारे ललुआ , पूज्य गुरूजी ख़तम कर गए सारा हलुआ . तुझे अकेला हम हरगिज न रोने देंगे , चल चौके में , हम सब साथ साथ रोयेंगे . जन्म : 18 सितम्बर , 1906 ,हाथरस हिंदी हास्य कविता के सशक्त हस्ताक्षर . अपने समय में मंचों के पर्याय थे . बच्चों के लिए भी लिखा . निधन : 18 सितम्बर ,1995 |
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शनिवार, 28 मई 2011
पंडित श्री गजराज -काका हाथरसी
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काका जी बड़े ही सरल , सहज एवं नए लेखकों के प्रोत्साहक थे . नंदन सितम्बर , 1995 में मेरी एक कहानी जादुई जंजीर प्रकाशित हुयी थी . तब उन्होंने लिखा था -
जवाब देंहटाएंजादू मन पर कर गयी वह जादुई जंजीर ,
इसी तरह चलते रहें प्रिय संजय के तीर .
काका "हाथरसी" जी को नमन!
जवाब देंहटाएंकाका "हाथरसी" जी की तो बात ही निराली है!
जवाब देंहटाएंबहुत मज़ेदार .....काकाजी को नमन!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया....मैं काकाजी की गोद में खूब खेली हूं....
जवाब देंहटाएंअब यादें हैं...