हॅंसीघर
कविता : परशुराम शुक्ल
बच्चों के विज्ञान भवन ने,
सभी जनों को खूब लुभाया।
उत्तल अवतल दर्पण रखकर,
हॅंसने वाला कक्ष बनाया।।
मम्मी-पापा,भैया-दीदी,
सभी देखने इसको आये।
खड़े हुए दर्पण के आगे,
और अनोखे पोज बनाये।।
दीदी पतली लम्बी हो गयी,
जैसे बिजली वाला पोल।
और बेचारे मोटे पापा,
बने बजाने वाला ढोल।।
भैया ने जब हवा भरी तो,
गेंद सरीखे फूले गाल।
और हमारी नाटी मम्मी,
बनी देखने में फुटवाल।।
हम सबने देखा दर्पण में,
अपने-अपने तन का हाल।
हॅंसते-हॅंसते लोटपोट सब,
क्या दर्पण ने किया कमाल।।
परशुराम शुक्ल
भोपाल
bahut sundar rachna.
जवाब देंहटाएंBahut Hi Sunder Kavita
जवाब देंहटाएंbahut sundara hasya pradhan bal kavita
जवाब देंहटाएंसुन्दर सरल रोचक बाल गीत पढ़कर मन बाग़ बाग़ होगया .पाण्डेय जी बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और रोचक बाल गीत ।
जवाब देंहटाएंबड़ी ही रोचक और प्यारी रचना है । बधाई
जवाब देंहटाएंThanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!
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बहुत सुंदर रचना👌👌👌
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