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सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

मखमल जैसे पीले फूल

बाल कविता : जय प्रकाश भारती
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छायाकार : रावेंद्रकुमार रवि
छोटे-छोटे पौधों पर, 
जाड़ों में लद जाते हैं.
करें सजावट घर-बाहर की,
ख़ुशबू ख़ूब लुटाते हैं.
नन्हे-नन्हे, बड़े-बड़े भी,
मखमल-जैसे पीले फूल. 
गेंदा इनको कहते हैं, 
इनमें कहीं न होता शूल.
जय प्रकाश भारती जी
जन्म : २ जनवरी, १९३६, मेरठ (उ.प्र., भारत) 
शिक्षा : एम. ए. 
अपने संपादन में बाल पत्रिका नंदन को 
लोकप्रियता के शिखर तक पहुँचाया.
बच्चों के लिए सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित/सम्पादित. 
- उनके चर्चित ग्रंथ हैं -
१. भारतीय बाल साहित्य का इतिहास 
२. बाल पत्रकारिता स्वर्ण युग की ओर 
३. बाल साहित्य इक्कीसवीं सदी में 
निधन : ५ फरवरी, २००५

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय नागेश, भारती जी की ज्यादा सुंदर कविता तुमने नहीं चुनी। भारती जी ने कुछ बड़ी बेजोड़ कविताएँ लिखी हैं। एक था राजा, एक थी रानी, दोनों भरते थे पानी...भारती जी की बड़ी सुंदर कविता है। ऐसे ही पगलो मौसी सरीखे कई बढ़िया शिशुगीत हैं। आगे कभी उन्हें भी दें। भारती जी के फूलों के गीत ज्यादा स्वाभाविक मुझे नहीं लगते। हालाँकि वे जब लिखे गए, तब का मैं गवाह हूँ। अकसर वे सुनाते थे, करीब-करीब रोज ही। उनका पैट वाक्य था--आचार्य, बैठो। बाकी काम इस वक्त छोड़ दो, यह कविता देखो। जब कोई साहित्यिक विमर्श करना होता था, तब उनका यह हलका-फुलका अनौपचारिक अंदाज होता था। ...तो इन कविताओं पर भी उनसे चर्चा होती थी। वे खुलकर सुझाव माँगते थे, कुछ पर अमल भी करते थे। अलबत्ता कविता पढ़कर भारती जी की याद आ गई। मेरी आँखें नम हैं। उनसे कुछ असहमतियाँ थीं, पर उनमें बहुत कुछ ऐसा था जिसे मैं उम्र भर याद करता रहूँगा। और सच यह भी है कि वे मुझे नंदन में आग्रहपूर्वक न लाए होते, तो आज बाल साहित्य से मेरा ऐसा रिश्ता न होता। उनसे मेरी असहमतियाँ थीं, पर वे बेशक मेरे गुरु थे जिनके लिए आज भी मेरा सिर आदर से झुकता है। सस्नेह, प्र.म.

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  2. जयप्रकाश भारती जी की याद करके मुझे तो आपने रुला ही दिया । इतने बड़ा इंसान,
    आजीवन बालक, बाल-साहित्य ऒर बाल-साहित्यकारों के प्रति हर घड़ी समर्पित ऎसा साहित्यकार ऒर संपादक हिन्दी क्या मुझे ऒर भाषाओं में भी देखने की तमन्ना हॆ । स्वाभिमान के धनी थे लेकिन अहंकार रत्ती भर भी नहीं । मेरे कोरिया प्रवास के दॊरान तो विशेष रूप से उनके पत्रों ने मुझे अद्भुत बल दिया था, ऒर प्रेरणा भी । हम कृतघ्न होंगे यदि समय रहते उनके दिए का सही सही मूल्यांकन नहीं कर पाते । वे अपनी अभिव्यक्ति में स्पष्ट ऒर मजबूत थे लेकिन आज की कुछ तथाकथित बहुत नामी गरामी विभूतियों की गुट्बाजियों, पूर्वाग्रही संकीर्णताओं,अहसानों से लादने ऒर अपनी अपनी ढपली अपना अपना राग अलापने की सड़ांधभरी तथा ईर्ष्यालु वृतियों से अलग । इसीलिए कई बार उन्हें ठीक से समझने में कइयों को कठिनाई भी हो जाती थी । भले ही वे कई, बहुत बार अपनी अभिव्यक्तियों में वॆसे भी दिख जाते हों ।सच तो यह हॆ कि उनकी बॊछारें सब के लिए थीं । उनका व्यवहार नकली हो ही नहीं सकता था । दिखावा या बनावटीपन उनमें दुर्लभ ही नहीं असम्भव था ।वे हॆंस क्रिश्चियन ऎंडरसन जॆसे विश्वविख्यात सम्मान से सम्मानित होने वाले अकेले भारतीय लेखक थे जो हिन्दी से थे । यह कम बड़ी बात नहीं हॆ । यह हमारा गर्व भी हॆ ऒर गॊरव भी । ।समकालीन समयों में भारतीय पुरस्कारों/सम्मानों के प्रश्नों के घेरे में आते चले जाने के बावजूद । उनके द्वारा संपादित पुस्तक "हिन्दी के श्रेष्ठ बाल-गीत" जिसमें सुना हॆ प्रकाश मनु जी का भी सहयोग रहा था, आज भी एक चमकती हुई किताब हॆ भले ही बहुतों के गले में वह अटकती भी हो । किसी बड़े साहित्यकार की एक यह भी पहचान होती हॆ कि उसने अपने साहित्यिक क्षेत्र में बिना लागलपेट के कितने सार्थक ऒर अच्छे लेखक दिए याने प्रोत्साहित किए । बाल साहित्य के क्षेत्र में हिन्दी के ’त्रिलोचन थे’ । भारतीजी के समक्ष इस दृष्टि से उनके समय में यदि एक भी हिदी लेखक हो तो उसका नाम मॆं आदर सहित जानना चाहुंगा । कुछ छोटे मुंह बड़ी बात हो गई हो तो क्षमा कर दिया जाऊं, क्योंकि जानबूझकर किसी का भी दिल दुखाना या किसी का भी अपमान करना मुझे नहीं आता ।डॉ. नागेश पाण्डेय ’संजय’ सामने होते तो उन्हें गले ही लगा लेता उस सम्मान के लिए जो उन्होंने जयप्रकाश भारती जी को दिया हॆ । सस्नेह : दिविक रमेश

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