बालगीत : डा. श्रीप्रसाद हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम हल्लम लंबी लंबी सूँड़ फटाफट फट्टर फट्टर लंबे लंबे दाँत खटाखट खट्टर खट्टर भारी भारी मूँड़ मटकता झम्मम झम्मम हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम पर्वत जैसी देह थुलथुली थल्लल थल्लल हालर हालर देह हिले जब हाथी चल्लल खंभे जैसे पाँव धपाधप पड़ते धम्मम हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम हाथी जैसी नहीं सवारी अग्गड़ बग्गड़ पीलवान पुच्छन बैठा है बाँधे पग्गड़ बैठे बच्चे बीस सभी हम डग्गम डग्गम हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम दिनभर घूमेंगे हाथी पर हल्लर हल्लर हाथी दादा जरा नाच दो थल्लर थल्लर अरे नहीं हम गिर जाएँगे घम्मम घम्मम हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम डा. श्रीप्रसाद जन्म ; 5 जनवरी ,1932 .आगरा का पारना ग्राम शिक्षा : एम्. ए. , पी-एच. डी. बाल साहित्य बच्चों के लिए बहुत रोचक कहानियां, कविताएँ एवं पहेलियाँ लिखी . दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित . संपर्क : n-9/87,d-77,ब्रज भूमि ,जानकी नगर , बजरडीहा , वाराणसी चित्र साभार : गूगल सर्च
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रविवार, 3 अप्रैल 2011
हाथी चल्लम- चल्लम (बालगीत): डा. श्रीप्रसाद
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बढ़िया...
जवाब देंहटाएंमजेदार ...
जवाब देंहटाएंनागेश जी आपने उत्कृष्ट बाल साहित्यकारों को एक परिवार का सदस्य बना दिया है. सभी के दर्शन एक जगह करने में सुविधा होती है.
जवाब देंहटाएंप्रिय नागेश, डा. श्रीप्रसाद जी की यह बाल कविता मेरी सर्वाधिक पसंदीदा बाल कविताओं में से है जिनके बारे में मैंने बाल कविता के इतिहास में बहुत विस्तार से लिखा है और इसका जिक्र और प्रशंसा करते हुए मैं कभी थकता नहीं। श्रीप्रसाद जी हमारे बीच के सबसे वरिष्ठ लेखकों में से हैं जो अब भी इतने उत्साह से लिख रहे हैं। बाल कविता के तो वे शिखर व्यक्तित्व हैं ही, साथ ही बाल कहानी, बाल उपन्यास, संसमरण हर विधा में उन्होंने लिखा है और बहुत ऊँचे पाए का लिखा है। हम सब सौभाग्यशाली हैं कि वे हमारे बीच मौजूद हैं और हम उन्हें इतनी लगन और तन्मयता से काम में लगे देखते हैं। सस्नेह, प्र.म.
जवाब देंहटाएंएक मानक हिंदी बालकविता, जिसमें बचपन है, प्रकृति है, जीवन का उल्लास और मस्ती है. सुंदर—सुरीली—सम्मोहक कविता को मानक शब्दावलि में पढ़वाने के लिए आभार
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