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सोमवार, 31 जनवरी 2011

बूझ-बुझब्बल

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बताओ तो जानें 

रामेश्वर दयाल दुबे 
[1]
मुँह खोले ही लेटे रहते , 
मुँह भर जाता तो चल देते .
चलते-चलते सेवा  करते ,
पैसा एक नहीं हैं लेते ?
[2]
बड़ा अनोखा ,
तीन हाथ हैं ,
बिना पैर के
 नाचा करता ?
[3]
खाना खाती नहीं 
सिर्फ पीती हूँ पानी .
पेट बड़ा , मुंह छोटा  
मेरी यही कहानी ?
उत्तर : १.जूते २.शीलिंग  फैन ३.सुराही 

रामेश्वर दयाल दुबे ( जन्म:१ जुलाई , १९०९;मैनपुरी )
हिंदी के सबसे वयोवृद्ध बाल साहित्यकार 
 नहीं रहे . 
२४ जनवरी को वे गोलोक वासी हो गए .
हिंदी के  अनन्य सेवक और गाँधीवादी  थे
 बाल भारती , गुलदस्ता , भारत के लाल ,
 माँ यह कौन ,आलू चना ,
 चले चलो
आदि 
उनके  प्रमुख बाल कविता संग्रह हैं .
 उनकी ये पहेलियाँ सितम्बर १९९५ में 
मेरे अतिथि संपादन में प्रकाशित
 ' जिन्दगी अख़बार होकर रह गयी '{प्रधान संपादक : गौरी शंकर मिश्र } 
के
 बाल साहित्य विशेषांक 
में 
प्रकाशित हुईं थीं .
 बाल-मंदिर की ओर से उन्हें विनम्र श्रद्दांजलि

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