बालगीत : डा. शेषपाल सिंह ' शेष '
झनकू राम कुम्हार गधे पर ,
डंडे पेल रहे थे .
गधेराम सुस्ती में डंडे ,
तन पर झेल रहे थे .
झनकू परेशान थे , कैसे
आगे उन्हें बढ़ाएं ?
जल्दी पहुंचे और समय से
अपना काम कराएँ .
पीट-पीट कर थके बहुत तब
सूझ अनोखी आई .
एक सिरे पर डंडे के झट
हरी घास लटकाई .
बैठ पीठ पर , बड़े मजे से ,
की हरियाली आगे .
चारे के लालच में लपके ,
गधेराम जी भागे .
गधेराम जी जितना बढ़ते ,
चारा आगे बढ़ता .
खाने की कोशिश करते पर ,
दावं न उनका चढ़ता .
रहे दौड़ते गधेराम जी ,
किंतु नहीं खा पाए .
झनकू सफल सूझ पर अपनी ,
मन ही मन हर्षाए .
जन्म : ४ मई , १९५२ , आगरा
आपने बाल साहित्य पर शोध कार्य कर पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है.
बच्चों के लिए उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं .
आपने बाल साहित्य पर शोध कार्य कर पी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है.
बच्चों के लिए उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं .
संपर्क :बालाजी नगर , आगरा
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