शिशुगीत : निरंकारदेव सेवक
लाल टमाटर-लाल टमाटर ,
मैं तो तुमको खाऊंगा ,
रुक जाओ , मैं थोड़े दिन में
और बड़ा हो जाऊंगा .
लाल टमाटर-लाल टमाटर ,
मुझको भूख लगी भारी ,
भूख लगी है तो तुम खा लो -
ये गाजर मूली सारी .
लाल टमाटर-लाल टमाटर ,
मुझको तो तुम भाते हो .
जो तुमको भाता है भैया ,
उसको क्यों खा जाते हो ?
लाल टमाटर-लाल टमाटर ,
अच्छा तुम्हें न खाऊंगा .
मगर तोड़कर डाली पर से
अपने घर ले जाऊंगा .
जन्म ; १९ जनवरी ,१९१९
शिक्षा : एम्. ए. ,बी. टी . , एल-एल. बी.
बाल साहित्य में शोध के प्रवर्तक .
बालगीत साहित्य (१९६६ ) उनका चर्चित ग्रन्थ है .
बच्चों के लिए बहुत रोचक कहानियां, कविताएँ लिखी .
दर्जनों पुस्तकें प्रकाशित .
निधन : २९ अक्तूबर ,१९९४
संपर्क : पूनम सेवक , १८५ ,सिविल लाइन , बरेली
बहुत बढ़िया बालकविता!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बाल कविता . इसका तो मंचन भी हो सकता है .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर कविता....
जवाब देंहटाएंबच्चों की मजेदार कविता .
जवाब देंहटाएंप्रिय नागेश, सेवक जी की यह कविता बहुत बार पढ़ी हुई है, पर इतनी नायाब है कि जितनी बार भी पढ़ो, अच्छी लगती है। बच्चा ही नहीं, लाल टमाटर भी जैसे अपने नटखट चेहरे और शरारती छवि के साथ मन को मोह लेता है।...और यह बात कहते हुए याद दिलाना जरूरी है नागेश कि सेवक जी को अपने समय में कितनी कठिन लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं उन लोगों से जो बाल कविता को महज एक उपदेशात्मक चीज मानते थे। सेवक जी ने बड़ी हिम्मत और साफगोई से कहा कि ये बाल कविताएं नहीं हैं। जो कविता बच्चे के मन को आनंदित न कर पाए, वह बाल कविता तो हो ही नहीं सकती। यह बहुत सही लेकिन सख्त कसौटी थी, और बगैर तमाम लोगों की नाराजगी की परवाह किए, इसी आधार पर उन्होंने हिंदी बाल कविता का विस्तृत मूल्यांकन किया। और यों बाल साहित्य की आलोचना में उन्होंने जितना बड़ा योगदान किया, उसे अभी तक ठीक-ठीक समझा ही नहीं गया। सेवक जी का यह इतना बबड़ा योगदान है कि यहाँ बाल साहित्य का कोई बड़ा से बड़ा लेखक-आलोचक उनके आगे नहीं ठहर पाता।
जवाब देंहटाएंबहरहाल, यह सब तो प्रसंगवश है। फिलहाल बात तो लाल टमाटर की हो रही है और बच्चे और लाल टमाटर की यह मीठी बतकही मन को लुभा लेने वाली और बेजोड़ है। टमाटर की लाली से भरपूर इस कविता को पढ़वाने के लिए आभार। सस्नेह, प्र.म.
ये तो सेवक जी का काफी खूंखार गीत है... एकदम लालम लाल गीत...
जवाब देंहटाएंभूख को उद्दीप्त करती शब्दावली.... हौसले को बढ़ावा देती ध्वन्यात्मकता. .. है न एकदम हिंसक गीत :)
पर निरंकार जी गीत का अंत होते-होते तक जैन मुनि क्यों बन जाते हैं?
प्रिय नागेश, इस कविता पर एक बहुत विस्तृत टिप्पणी लिखी थी। पता नहीं कैसे गायब हो गई। कोई बात नहीं, पर इतना दोहराना चाहूँगा कि इस कविता में एक नहीं, दो नटखट बच्चे हैं। लाल टमाटर का चेहरा भी किसी नटखट बच्चे से कम नहीं, जिस पर एक बड़ी शरारती मुसकान मुझे नजर आती है इस कविता को पढ़ते समय। धरोहर में सचमुच अच्छी चीजें जा रही हैं। सर्वेश्वर, स्वर्ण सहोदर, विद्याभूषण विभु का भी कुछ देना चाहिए। सस्नेह, प्र.म.
जवाब देंहटाएंआदरणीय भाई साहब , आपकी टिप्पणी क्यों गायब हो रहीं हैं . बात मेरी समझ में नहीं आ रही . ...फ़िलहाल अपने मेल बॉक्स से उसे पुन: प्रस्तुत कर रहा हूँ -----
जवाब देंहटाएंPrakash Manu ने आपकी पोस्ट " लाल टमाटर " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
प्रिय नागेश, सेवक जी की यह कविता बहुत बार पढ़ी हुई है, पर इतनी नायाब है कि जितनी बार भी पढ़ो, अच्छी लगती है। बच्चा ही नहीं, लाल टमाटर भी जैसे अपने नटखट चेहरे और शरारती छवि के साथ मन को मोह लेता है।...और यह बात कहते हुए याद दिलाना जरूरी है नागेश कि सेवक जी को अपने समय में कितनी कठिन लड़ाइयाँ लड़नी पड़ीं उन लोगों से जो बाल कविता को महज एक उपदेशात्मक चीज मानते थे। सेवक जी ने बड़ी हिम्मत और साफगोई से कहा कि ये बाल कविताएं नहीं हैं। जो कविता बच्चे के मन को आनंदित न कर पाए, वह बाल कविता तो हो ही नहीं सकती। यह बहुत सही लेकिन सख्त कसौटी थी, और बगैर तमाम लोगों की नाराजगी की परवाह किए, इसी आधार पर उन्होंने हिंदी बाल कविता का विस्तृत मूल्यांकन किया। और यों बाल साहित्य की आलोचना में उन्होंने जितना बड़ा योगदान किया, उसे अभी तक ठीक-ठीक समझा ही नहीं गया। सेवक जी का यह इतना बबड़ा योगदान है कि यहाँ बाल साहित्य का कोई बड़ा से बड़ा लेखक-आलोचक उनके आगे नहीं ठहर पाता।
बहरहाल, यह सब तो प्रसंगवश है। फिलहाल बात तो लाल टमाटर की हो रही है और बच्चे और लाल टमाटर की यह मीठी बतकही मन को लुभा लेने वाली और बेजोड़ है। टमाटर की लाली से भरपूर इस कविता को पढ़वाने के लिए आभार। सस्नेह, प्र.म.
Prakash Manu द्वारा बाल-मंदिर के लिए १२ मई २०११ ८:३४ पूर्वाह्न को पोस्ट किया गया
आदरणीय भाई साहब , आज ही सर्वेश्वर जी कविता पोस्ट की है .
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