पतंगबाज़ों की गोंददानी
चावल की दुकान पुरानी,
मंडी में जानी-पहचानी.
इस पर बैठे बेचें चावल,
झुनकू के चाचा रमजानी.
आँगन में चुगती है चावल,
नन्ही-छोटी चिड़िया रानी.
बहुत प्रेम से खाती इसकी,
खिचड़ी नन्ही गुड़िया रानी.
खीर पकाकर खाते इसकी,
बिन दाँतों के नाना-नानी.
सबका मन ललचाने लगता,
सूँघ पुलाव की महक सुहानी.
चावल की कचरी से लगती,
होली की नमकीन सुहानी.
भात भी बनता सबसे बढ़िया,
जन्म : २ मई , १९६६ को बरेली में
-- प्रकाशित पुस्तकें --
चकमा, नन्हे चूज़े की दोस्त, वृत्तों की दुनिया.
चकमा, नन्हे चूज़े की दोस्त, वृत्तों की दुनिया.
सरस पायस के संपादक
संपर्क : राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, चारुबेटा,
खटीमा, ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड (भारत)
खटीमा, ऊधमसिंहनगर, उत्तराखंड (भारत)
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चित्र : गूगल सर्च से साभार
चित्र : गूगल सर्च से साभार
वाह, नागेश भाई!
जवाब देंहटाएंआपने तो आज दिल को ख़ुशियों से भर दिया!
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पतंगबाज़ी के उन दिनों के साथ-साथ
कई पुरानी यादें ताज़ा हो गईं!
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वसंत पंचमी की इस उत्प्रेरक बेला में
मन उत्साहित कर दिया!
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इस सम्मान और स्नेह के लिए आभारी हूँ!
रावेंद्रकुमार रवि को बहुत-बहुत बधाई!
जवाब देंहटाएंयह वर्णनात्मक बालगीत बहुत बढ़िया रहा!
बसन्तपञ्चमी की शुभकामनाएँ!
माँ सरस्वती को नमन........बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंरवि अंकल की सुंदर कविता के लिए धन्यवाद.....
बढ़िया ... है भाई साहब । बधाई ।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता है रावेंद्र, जिसमें झुनकू के चाचा रमजानी का जिक्र जी खुश कर गया। तुमने मेरे ब्लाग पर कमेंट किया है, डा. शेरजंग गर्ग के शिशुगीतों वाली पोस्ट में। उस पर कुछ आत्मीयता भरे शब्द मैंने लिखे हैं तुम नई पीढ़ी के उत्साही रचनाकारों के लिए। वहीं से पढ़ लेना। सस्नेह, प्र.म.
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