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रविवार, 26 दिसंबर 2010

बंदर जी का सपना


शिशु कविता
रावेंद्रकुमार रवि  
रावेंद्रकुमार रवि जी
 एक प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं.
 उन्होंने बाल साहित्य को 
इंटरनेट पर लोकप्रिय बनाया है. 
शाहजहाँपुर आगमन पर 
उन्होंने बाल-मंदिर के पाठकों के लिए  
अपनी एक सुन्दर शिशु कविता भेंट की.  

बंदर जी का सपना

झूल रहे झूला बंदर जी, 
ख़ुद को डाली में लटकाए. 
सोच रहे थे मन ही मन में, 
एक दुल्हनिया अब ले आएँ. 

तभी हाथ से छूटी डाली, 
झट धरती पर आए. 
सपना टूटा, जबड़ा फूटा 
मुँह से निकली हाए.  

**रवि जी का परिचय और उनका रोचक संपादन 
अंतरजाल पर प्रकाशित उनकी बाल पत्रिका 
"सरस पायस" पर देखा जा सकता है. 


4 टिप्‍पणियां:

  1. रवि जी मेरे आवास पर आए , बाल- मंदिर के लिए महत्त्व पूर्ण सुझाव दिए . बाल-मंदिर परिवार सहित मैं उनका आभारी हूँ .

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  2. नागेश जी,
    आपने मेरी इस कविता को
    बाल-मंदिर में बहुत बढ़िया ढंग से सजाया!
    --
    देख-पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!

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  3. आपकी कविता बहुत मजेदार है और बहुत अच्छी लगी. heartly greeting to u.

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अट्छा और साथर्क काम कर रहे हो नागेश। मेरी बधाई। समूचे बाल साहित्य और बाव साहित्यकारों को इस तरह एक मंच पर ले आना बहुत जरूरी और महत्वपूर्ण कार्य था। मुझे खुशी है कि तुमने इसे करके बड़ी अच्छी, शुभ पहलकदमी की।
    इस मंच को नई प्रतिभाओं के साथ-साथ बाल साहित्य की नींव रखने वाले शिखर व्यक्तित्वों के बड़े योगदान से भी जोड़ना जरूरी है। ताकि उन लोगों को एक सकारात्मक जवाब मिल सके, जो अपनी बात की शुरुआत ही यहाँ से करते हैं कि हिंदी के बाल साहित्य में ऐसा कुछ खास नहीं है। फिर से बधाई. सस्नेह, मनु

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टिप्पणी के लिए अग्रिम आभार . बाल-मंदिर के लिए आपके सुझावों/ मार्गदर्शन का भी सादर स्वागत है .